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________________ श्रमण परंपरा का इतिहास ८. श्री लाभचन्द्र जी म. में ही आपने आगमों के गुरु-गम्भीर ज्ञान को हृदयंगम कर ६. श्री जमीतराय जी म. लिया था। श्रमण समुदाय में आपकी प्रतिष्ठा निरन्तर १०. श्री चिंतराम जी म. वर्धमान होती रही। ११. श्री गोविन्दराम जी म. आपको सर्वविध सुयोग्य अनुभव करते हुए आचार्य १२. श्री रूपचन्द जी म. भगवन्त श्री सोहनलाल जी महाराज ने अपना उत्तराधिकारी (१३) आचार्य श्री काशीराम जी महाराज घोषित करते हुए आपको युवाचार्य पद प्रदान किया। आप दिव्य-भव्य व्यक्तित्व सम्पन्न संत शिरोमणि इस पद पर आप वि.सं. १६६६, फाल्गुन शुक्ला षष्ठी के थे। युगप्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी म. के आप पञ्चम । दिन आरूढ़ हुए। शिष्यरत्न थे। अपने गुरुदेव के महाप्रयाण के पश्चात् अपने गुरुदेव के अनुरूप ही आप भी संधैक्य के आप पंजाब श्रमण-मुनि परम्परा के आचार्य नियुक्त हुए। प्रवल पक्षधर थे। आचार्य सोहन के एकता के इस संदेश आपका जन्म वि. सं. १६४१, आषाढ़ कृष्णा के साथ आपने प्रलम्ब यात्राएं कीं। साधु सम्मेलनों में अमावस्या की मध्यरात्री को पसरूर नगर (वर्तमान पधारे। आपके कठिन श्रम का ही यह प्रतिफल था कि पाकिस्तान) में एक सम्पन्न जैन कुल में हुआ। श्रीमान् वि.सं. १९८६ के अजमेर सम्मेलन में समस्त स्थानकवासी गोविन्दशाह और श्रीमती राधादेवी आपके जनक और । श्रमण वृन्द एक हो गए। उसी समय आचार्य सोहनलाल जननी थे। जी म. को प्रधानाचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया था। आप सुसंस्कारों के मध्य पले और बड़े हुए। आपके _ वि.सं. १६६२ में अपने गुरुदेव के समाधि मरण के संस्कारित जीवन को देखकर ही श्री गैंडेराय जी महाराज पश्चात् आप पंजाब मुनि संघ के आचार्य बने। आर्य ने घोषणा की थी कि यह वालक महापुरुष बनेगा। सुधर्मा स्वामी के आप नब्बेवें पट्टधर थे। आप एक कठोर अनुशास्ता होते हुए भी नवनीत सम कोमल हृदय रखने आप युवा हुए। आचार्य देव श्री सोहनलाल जी वाले महापुरुष थे। महाराज के दर्शनों से आपके हृदय में संसार से विरक्ति और संयम में अनुरक्ति उत्पन्न हो गई। पर एतदर्थ आपका विचरण क्षेत्र अत्यन्त विशाल रहा। पंजाब, पारिवारिक अनुमति भी अनिवार्य थी। कई वर्षों तक हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आपने इसके लिए संघर्ष किया। आखिर उन्नीस वर्ष की महाराष्ट्र, बम्बई तथा गुजरात तक की आपने पद यात्राएं अवस्था में आपको सफलता प्राप्त हो ही गई। इसी वि.सं.. की। संभवतः आप पंजाब-परम्परा के पहले मुनि थे में मार्गशीर्ष कृष्णा सप्तमी के दिन कान्धला उत्तर प्रदेश में जिन्होंने इतनी प्रलम्ब यात्राएं की। आपने महामहिम आचार्य देव श्री सोहनलाल जी म. से __ अम्बाला नगर (हरियाणा) में वि. सं. २००२, ज्येष्ठ मुनिवृत अंगीकृत कर लिया। कृष्णा अष्टमी रविवार के दिन समाधि संथारे सहित आपने आप तन-मन-प्रण से संयम को समर्पित हो गए। महाप्रयाण किया। अनुश्रुति है कि भारत भर से लगभग गुरु सेवा आपका प्रथम आनन्द था। स्वाध्याय, चिन्तन, पचास हजार श्रद्धालू आपके अन्तिम दर्शनों के लिए मनन आपके अहर्निश के अनिवार्य अंग थे। अल्प समय एकत्रित हुए थे। पंजाब श्रमणसंघ की आचार्य परम्परा २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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