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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि मन में उस मारने वाले के प्रति किंचित्मात्र भी रोष नहीं था और न किसी से उन्होंने इस सम्बन्ध में कुछ कहा भी। किन्तु किसी ने उसे लट्ठ मार कर भागते हुए देख लिया और अधिकारी को सूचित कर दिया। राज्याधिकारियों ने उस दुष्ट दोषी को पकड़ कर दण्ड देना प्रारम्भ कर दिया और लोह के एक भारी कड़ाव “कटाह" के नीचे दबा दिया। पूज्य भूधरजी महाराज को जब यह ज्ञात हुआ तो उन्होंने अन्नजल का परित्याग करते हुए अपने भक्तों को कहा - "जब तक उस व्यक्ति को कष्ट-मुक्त नहीं किया जायेगा तब तक में अन्नजल ग्रहण नहीं करूंगा।" परिणामतः श्रावकवर्ग में घबराहट के साथ हलचल उत्पन्न हो गई कि पचौले की तपस्या का यदि महाराज ने पारणा नहीं किया तो पांच उपवास का प्रत्याख्यान और कर लेंगे और इस प्रकार १० दिन की कठिन तपश्चर्या हो जायगी। अतः श्रावकों ने दौड़-धूप की और उस दुष्ट दोषी को मुक्त कर दिया गया। वह दोषी व्यक्ति तत्काल भूधरजी महाराज के पास आकर उनके चरणों में गिर गया। अपनी मूर्खता भरी क्रूरता के लिये उसने बारम्बार क्षमा मांगते हुए भविष्य में इस प्रकार का कोई दुष्कर्म न करने की प्रतिज्ञा ली। पूज्यश्री भूधरजी महाराज के अलौकिक गुणों से प्रभावित हो कथावाचक नारायणदास ने पूज्य भूधरजी महाराज के पास श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली। __ श्री भूधरजी महाराज के शिष्य परिवार में श्री नारायण जी महाराज, श्री जयमलजी महाराज और श्री कुशलोजी महाराज बड़े ही प्रभाव शाली एवं विद्वाशिष्य थे। आपके एक और विद्वान् शिष्य थे, जिनका नाम जैतसी मेड़ता जा रहे थे। विहार काल में आषाढ़ मास की प्रचण्ड गर्मी से उनके बड़े शिष्य श्री नारायण जी को प्राणापहारिणी प्यास का असह्य परीषह सताने लगा और वे एक डग भी चलने में अक्षम हो गये। तत्काल उनके साथी युवक सन्त पानी के लिये मेड़ता की ओर द्रुतगति से प्रस्थित हुए किन्तु पानी लेकर उनके यथाशीघ्र लौटने से पहले ही नारायण मुनि ने समाधिपूर्वक सुरलोक की ओर प्रयाण कर दिया। मार्ग में कुए थे, फिर भी श्रमण धर्म की रक्षा के लिये उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। किसी समय आतापनालीन महर्षि भूधरजी के सिर पर लाठी का प्रहार कर क्रूरता की पराकाष्ठा पर पहुंचे हुए नारायणदास ने बोधि प्राप्त हो जाने पर साधु मर्यादा की रक्षार्थ प्राणार्पण कर जैन इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। आचार्य भूधरजी महाराज की परम्पराएं : __ पूज्य श्री भूधरजी महाराज के शिष्यों से निम्नलिखित परम्पराएं प्रचलित हुईं(१) पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज की सम्प्रदाय उपशाखाएं १. पूज्य श्री रघुनाथजी के पट्टधर शिष्य पूज्य श्री टोडरमल के द्वितीय शिष्य इन्द्रमलजी महाराज के पश्चात् पाट से दो उपशाखाएं प्रचलित हुई, जिनमें भानमलजी महाराज और बुधमलजी महाराज हुए। बुधमलजी महाराजके शिष्य मरुधर केशरी श्री मिश्रीमलजी महाराज हुए। २. पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज के प्रशिष्य पूज्य श्री भैरोंदासजी से पूज्य श्री चौथमलजी महाराज की पृथक् शाखा प्रचलित हुई। (२) पूज्य श्री जैतसीजी महाराज की परम्परा । इस परम्परा के तपस्वी श्री चतुर्भुज जी महाराज के पश्चात् यह परम्परा आगे नहीं चली। (३) पूज्य श्री रघुनाथजी महाराज के एक मेधावी था। अपने अन्तिम चातुर्मासावास के लिये एक समय आचार्य भूधरजी महाराज अपने शिष्य परिवार के साथ १२ __ श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी श्रमण परंपरा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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