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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि होने की सूचना मिलते ही उग्र विहार कर धार पहुंचे और ७. पूज्य श्री बालचन्दजी महाराज उसे संस्तारक से उठा स्वयं ने जीवनपर्यन्त चतुर्विध आहार ८. पूज्य श्री ताराचन्दजी महाराज का परित्याग कर संथारा ग्रहण कर लिया। जिनेश्वर प्रभु ६. पूज्य श्री प्रेमचन्दजी महाराज के धर्मसंघ की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिये इस प्रकार का १०. पूज्य श्री रेवतसीजी महाराज महान् त्याग संसार के इतिहास में खोजने पर भी अन्यत्र ११. पूज्य श्री पदार्थ जी महाराज उपलब्ध नहीं होगा। अन्ततोगत्वा संथारा स्वीकार करने १२. पूज्य श्री लोकमलजी महाराज के आठवें दिन विक्रम संवत् १७५६ की आषाढ़ शुक्ला १३. पूज्य श्री भवानीदासजी महाराज ५ की संध्या के समय अपूर्व त्यागी, महान् धर्मोद्धारक, १४. पूज्य श्री मलूकचन्दजी महराज जिनशासन-प्रभावक आचार्य श्री धर्मदासजी महाराज ने १५. पूज्य श्री पुरुषोत्तमजी गहाराज शान्त-दान्त एवं विशद्ध परिणामों के साथ एकान्ततः १६. पूज्य श्री मुकुटरामजी महाराज अध्यात्म-चिन्तन में लीन रहते हुए स्वर्गारोहण किया। १७. पूज्य श्री मनोहरदासजी महाराज जिनेश्वर के धर्मशासन की अभूतपूर्व प्रभावना हुई। इस १८. पूज्य श्री रामचन्द्रजी महाराज प्रकार पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज जैन इतिहास में १६. पूज्य श्री गुरु सदा साहब जी महाराज यावच्चन्द्र-दिवाकरौ अमर हो गये। २०. पूज्य श्री बाघजी महाराज पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज के स्वर्गारोहण के पश्चात् २१. पूज्य श्री रामरतनजी महाराज उनके २२ शिष्यों ने विभिन्न प्रान्तों के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में २२. पूज्य श्री मूलचन्दजी महाराज “द्वितीय" स्वतंत्र रूप से विचरण कर धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ- इन २२ मुनिवरों में से वर्तमान काल में केवल प्रथम, साथ अपने गुरु पूज्य श्री धर्मदासजी की यशोगाथाओं को द्वितीय, षष्ठम, सत्रहवें और अठारहवें पूज्य मुनिउत्तमों दिग्दिगन्त में गुंजरित कर दिया। उन २२ विद्वान् मुनियों। की समुदायें ही विद्यमान हैं। हस्तलिखित कतिपय का श्रमण-श्रमणी समुदाय चारों दिशाओं में फैल गया। पट्टावलियों में उपरिलिखित २२ नामों का कुछ भिन्न पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज के उन २२ विद्वान् सुशिष्यों रूप में भी उल्लेख मिलता है। का श्रमण-श्रमणी-समूह बावीस सम्प्रदाय, बावीस समुदाय एवं बावीस टोला-इन नामों से लोक में प्रसिद्धि को प्राप्त पूज्य श्री मूलचन्द्र महाराज की सम्प्रदायें : पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज के प्रथम शिष्य पूज्य श्री मूलचन्द्रजी महाराज की समदाय से अनेक शाखाएं बावीस सम्प्रदाय के नायक मुनियों के नाम : उपशाखाएं निकली उनमें निम्नलिखित ६ विद्यमान हैं१. पूज्य श्री मूलचन्दजी महाराज १. लीमड़ी मोटी पक्ष “आठ कोटि" २. पूज्य श्री धन्नाजी महाराज ३. पूज्य श्री लालचन्दजी महाराज २. लीमड़ी न्हानी पक्ष “छः कोटि" ४. पूज्य श्री मन्नाजी महाराज ३. गोंडल मोटी पक्ष “आठ कोटि" ५. पूज्य श्री मोटा पृथ्वीचन्दजी महाराज ४. गोंडल नान्ही पक्ष “छः कोटि" ६. पूज्य श्री छोटा पृथ्वीचन्दजी महाराज ५. बरवाला हुआ। १० श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी श्रमण परंपरा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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