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________________ वंदन - अभिनंदन ! ___ आपका संयम परिधियों में ही सिमटकर नहीं रहा। | आपके मृदु और आत्मीय व्यवहार से आपका ही बन कर वर्तमान के सत्य से आप आंख मूंदकर बैठ जाने वाले नहीं | रह जाता है। पिछले कई वर्षों से मैं आपके सम्पर्क में हूँ। हैं। मैंने स्वयं देखा है और सुनता रहा हूँ कि आपने | प्रथम दर्शन में ही मैं आपके व्यक्तित्व और व्यवहार की अनेक बार सामाजिक, पारिवारिक कितने ही क्लेशों को कायल बन गयी थी। समय के साथ-साथ मेरी श्रद्धा शान्त किया है। अन्याय और दुर्बल-दलन आपकी आत्मा विस्तृत ही हुई है। को कंपा देता है। आप सदैव न्याय और दुर्बल के पक्षधर रहे हैं। कितनी ही बार आपने अपने जीवन को दांव पर ____ मैं पूर्ण आस्था के साथ यह मानती हूं कि हमारे लगाकर भी न्याय की पक्षधरता की। न केवल पक्षधरता समाज में आप जैसे कुछ और मुनिराज हों तो हमारे समान की अपितु उसे विजित भी बनाया। का परिदृश्य बदल सकता है। ___ असंख्य गुण सुमनों का गुलदस्ता है आपका जीवन । ____ आपके संयमीय जीवन के पचासवें वसंत में प्रवेश उसका वर्णन असंभव है। पर मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ और कामना आपके दीक्षा स्वर्ण-जयन्ति के पावन प्रसंग पर मैं करती हूँ कि आपका सान्निध्य मुझे सतत प्राप्त होता रहे। समस्त उत्तर भारत के श्री संघों की ओर से आपके संयम श्रीमती दमयन्ती देवी भण्डारी को नमन करता है। आपके बहुआयामी व्यक्तित्व का (टी.नगर, चेन्नई) अभिनन्दन करता हूँ। राजेन्द्र पाल जैन प्रधान : एस.एस. जैन महासभा पंजाब (संयम को नमन) लुधियाना (उत्तरी भारत) परमवंदनीय, परमश्रद्धेय श्रमणसंघीय सलाहकार एवं मृदु - हृदय मुनिराज मंत्री मुनि श्री सुमनकुमार जी महाराज श्रमणसंघ के मूर्धन्य मनस्वी संतरल हैं। आपका प्रलम्ब संयमीय जीवन परमुज्ज्वल परम श्रद्धेय गुरुदेव श्री सुमन मुनि जी महाराज एक और निष्कलंक रहा है। आपने अपने श्रेष्ठ जीवन से सहृदयी मुनिराज हैं। उन्होंने अपनी प्रतिभा और श्रम के स्वात्म कल्याण का मार्ग तो प्रशस्त किया है साथ ही अपने बल पर आज संघ और समाज में एक गौरवमयी मुकाम | उच्च संयम से समाज में संयम के मूल्यों को भी प्रतिष्ठित हासिल किया है। वे श्रमण समाज में एक गणमान्य | किया है। मुनिराज हैं। स्वयं आचार्य भगवन् भी संघ और समाज आप अपने संयमीय जीवन के पचासवें वर्ष में प्रवेश सम्बन्धी कोई निर्णय लेने से पूर्व आपकी सलाह लेना कर रहे हैं। यह अत्यन्त हर्ष का क्षण है। इस अवसर पर आवश्यक मानते हैं। इसीलिए आपको श्रमणसंघीय मैं हृदय की अनन्त आस्थाओं के साथ आपके संयम को सलाहकार और मंत्री पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। नमन करता हूँ। ___ संघ में उच्च पद पर आसीन होते हुए भी आप में डूंगरचन्द शान्तिलाल रांका बालक की सी सरलता है। अहं का भाव आपको स्पर्श कलाकुरची तक नहीं कर पाया है। आपके पास आने वाला व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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