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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि किया है। प्रायः देखा जाता है कि इतिहास लेखन करते | | एक बहुआयामी व्यक्तित्व समय लेखकों द्वारा श्रमणों का जीवन अंकन तो किया जाता है पर श्रमणी-परिवार का परिचय गौण कर दिया वर्तमान कालीन महान् संतों की श्रृंखला में पूज्य जाता है। साधु एवं साध्वी का साधक जीवन समान है, ऐसे में साध्वियों की उपेक्षा करने का अर्थ स्पष्टतः हमारी गुरुदेव इतिहास मार्तण्ड श्री सुमन मुनि जी महाराज का दृष्टि-प्रतिबद्धता है। इस दृष्टि प्रतिबद्धता के कारण हमने नाम प्रमुखता से अंकित किया जाता है। आपने अपने उदात्त विचारों और श्रेष्ठ संयमीय जीवन से जैन जगत् में काफी कुछ खोया है। अपनी एक विशेष पहचान बनाई है। आपके तीक्ष्ण और ___ मुझे यह लिखते हुए गौरव की अनुभूति होती है कि मौलिक विचारों में जहां आगमीय तर्क का धरातल होता आदरणीय श्री सुमनमुनि जी महाराज ने इतिहास का है वहीं आपके संयमीय जीवन में स्वविवेक जागृत रहता लेखन करते हुए साध्वी समाज का परिचय देकर एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की है। तथापि मेरा सोचना है कि अभी इस दिशा में काफी कुछ अपेक्षित है। यदि इस इस मनस्वी मुनि का अवतरण लगभग तिरेसठ वर्ष अपेक्षा की भविष्य के क्षणों में श्रद्धेय श्री द्वारा पूर्ति हुई पूर्व राजस्थान के प्रसिद्ध नगर बीकानेर के निकटवर्ती तो सचमुच उल्लेखनीय कार्य सिद्ध होगा। ग्राम पांचूं में हुआ था। माता वीरांदे और पिता चौधरी आदरणीय श्री सुमनमुनि जी महाराज वर्तमान में भीवंराजजी का मातृत्व-पितृत्व धन्य बना। अखिल भारतीय वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के आप चौदह वर्ष के हुए तो आप में छिपी संभावनाएं सलाहकार एवं मंत्री पद पर सुशोभित हैं। दुराग्रह के दुष्ट अनावृत होने लगी। हृदय उमंगित बना कुछ करने को । ग्रह से अपनी चेतना के चन्द्रमा को बचाते हुए सच्चे अर्थों किसी ऐसी यात्रा पर निकलने को जिसे वस्तुतः तीर्थयात्रा में अनेकान्त की उपासना एवं निर्मल संयमी जीवन की कहा जा सके। ... और आप निकल ही पड़े। मानव चले आराधना करना इनके जीवन का शुक्लपक्ष रहा है। तो राहें स्वतः निर्मित होती चली जाती हैं। मंजिलें ऐसे इनकी वैचारिक दृष्टि में आस्था के नाम पर किसी सम्प्रदाय यात्री के कदमों पर अवनत हो जाती हैं। के खूटे से बन्धने का अर्थ मानसिक परतन्त्रता है। क्योंकि धर्म मनुष्य को स्वतन्त्रता का आकाश प्रदान __ आप चले तो पूज्यगुरुदेव प्रवर्तक पण्डितरत्न श्री करता है। शुक्लचन्द जी महाराज का सान्निध्य मानो आपकी बाट ____ अन्त में एक बार पुनः मैं आदरणीय श्री सुमन मुनि जोह रहा था। गुरुदेव ने आपकी सच्ची प्यास को देखते जी म. की उनपचास वर्षीय निर्मल संयम पर्याय का हृदय हुए आपको मुनि धर्म की दीक्षा प्रदान की। पूज्य प्रवर्तक से अभिनन्दन करते हुए यह मंगलकामना करती हूँ कि श्री जी ने आपको अपने शिष्य पण्डित रत्न श्री महेन्द्र मुनि भविष्य के क्षणों में सतत निर्विघ्न संयमी जीवन जीते हुए जी म. की निश्राय में अर्पित कर दिया। आपका व्यक्तित्व समग्र मनुष्यता के लिए स्वर्णिम प्रभात आपने आगम साहित्य का पारायण किया। पाश्चात्य सिद्ध हो। और पौर्वात्य दर्शन भी आपकी अध्ययन परिधि में सिमटते डॉ. साध्वी सरिता | गए। एक ही वाक्य में लिख दूं - आप जैन जगत् के दिल्ली मूर्धन्य विद्वानों में परिगणित होने लगे। ७६ ७६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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