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३४८ पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड
प्रचार का कार्य अपने हाथ में लिया। आधुनिक ढंग से प्रचार करने की दृष्टि से संघ ने एक उपदेशक विभाग स्थापित किया, एक उपदेशक प्रशिक्षण विद्यालय भी चलाया। इस विभाग में कार्य करने वालों में प्रमुख कँवर साहब ही थे। अन्य सहयोगी विद्वानों में पं० हरिप्रसाद न्यायतीर्थ, पं० विद्यानन्द शर्मा, स्वामी कर्मानन्द, पं. अजित कुमार शास्त्री, वाणीभूषण पं० तुलसीराम काव्यतीर्थ, वेद विद्याविशारद पं० मंगलसेन एवं बाबू जयभगवान वकील आदि थे। तभी से कंवर साहब ने जैन समाज की ओर से आयसमाज विद्वानों के साथ अनेक शास्त्रार्थ किये । सन् १९२७ में मई माह में विलसी (बदायं) में आर्यसमाज के विद्वान पं० वंशीधर जी शास्त्री के साथ भी उनका एक शास्त्रार्थ हुआ था। मा० दि० जैन संघ के उपदेशक विभाग के विद्वान् के रूप में उन्होंने देश भर में भ्रमण कर धर्मप्रचार किया। वे सिंह की तरह निर्भीक थे और उन्होंने शास्त्रार्थ द्वारा दिग्विजय भी प्राप्त की। इस कारण उनका दिग्विजय सिंह नाम 'यथानाम तथागण' के अनुसार सार्थक था।
__ कंवर साहब जन्मना जैन नहीं थे। उन्होंने परीक्षापूर्वक विवेक से जैनधर्म को उत्कृष्ट समझ जैनत्व ग्रहण किया । अतः वे रूढ़िवाद के विरोधी थे। यही कारण है कि जब १९२७ में दिल्ली में सुधारवादी जैनों द्वारा भा० दि० जैन परिषद् की स्थापना हुई, तब कुंवर साहब ने इस कार्य में प्रेरक महत्वपूर्ण भूमिका निवाही थी। इस परिषद् की। स्थापना दि० जैन महासभा के पुराणपंथी लोगों की अनुदारता के फलस्वरूप की गई थी। इसके प्रमुख कर्णधारों में अजितप्रसाद जैन, बैरिस्टर चम्पतराय, म. भगवानदोन, ब्रशीतलप्रसाद आदि थे। इस कार्य में कुंवर साहब की भूमिका से स्पष्ट होता है कि वे उदारता, प्रगतिशीलता एवं समाज सेवा की प्रतिमूर्ति थे। वे न केवल जैनधर्म में विश्वास ही करते थे, अपितु वे जैन समाज से उसके सिद्धान्तों के अनुरूप प्रवृत्ति करने के कार्य में रुचि रखते थे । जैनधर्म के प्रचार एवं शिक्षण हेतु विन्ध्यांचल यात्रा
प्रारम्भ में जैन संघ प्रचारकों द्वारा ही धर्म प्रचार करता था। वे प्रायः संस्था विशेष के लिये चन्दा मांगने के उददेश्य से जाते थे । वे भी शहरों में जाते थे, गांवों का क्षेत्र उनसे अछता था । पर उपदेशक-विभाग के निर्माण एवं कुंवर दिग्विजय सिंह जी के सक्रियण के कारण धर्म प्रचार यात्राओं का स्वरूप ही बदल गया। उपदेशक के रूप में कंवर ने उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, दिल्ली, हरयाणा एवं मध्य क्षेत्र की यात्रा की और जैनधर्म की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाये।
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ब्रह्मचारी कुंवर दिग्विजय सिंह
श्री मूलचन्द्र बड़कुर, बड़ा शाहगढ़
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