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बीसवीं सदी को एक जनेतर जैन विभूति : कुवर दिग्विजय सिंह ३४७
कुंवर साहब ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल में ही पांच वर्ष की उम्र से प्रारम्भ की। कुछ समय पश्चात् वे अपने नाना बाबू ब्रह्मासिंह के घर गये। वे छोटी जुही, कानपुर में रहते थे। वहाँ इन्होंने जिला स्कूल में दसवीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने संस्कृत का भी अध्ययन किया। उनका हृदय विचारक एवं विवेकवान् था। उनकी धर्म, देश और सदाचार पालन में गहरी आस्था थी। अपने कुलधर्म के प्रति अगाध आस्था के कारण उन्होंने भागवत, रामायण, महाभारत, गीता और वेदान्त का भी अच्छा अध्ययन किया।
उन दिनों उनके क्षेत्र में आर्यसमाज के विद्वानों द्वारा धर्म प्रचार किया जाता था। कवर साहब उनके सम्पर्क में आये । उनकी रुचि आर्यसमाज के प्रति जगी। तदनुसार, वे सन्ध्या-वन्दन आदि की दैनिक क्रियायें करने लगे। जैनधर्म के प्रति आकर्षण का सुयोग
वे सन् १९०९ के फाल्गुन मास में अपनी जमींदारी के अधिकार सम्बन्धी रजिस्ट्री कराने इटावा आए थे। तब इटावा के जैन-विद्वान् पं० पुत्तूलाल जी से उनका सम्पर्क हुआ। उनसे उन्होंने जैनधर्म की जानकारी प्राप्त की। उनकी पंडित जीसे जैनधर्म के विषय में चर्चा होने लगी। उनमें उन्हें अनेक शंकाओं का समाधान मिलता था। उनकी जिज्ञासा को भांपकर पण्डित जी ने कुंवर साहब को दशलक्षण पर्व में इटावा आमन्त्रित किया। उन दिनों दशधर्मों का विदेचन तथा तत्वार्थसूत्र का प्रवचन सुनकर उन्हें जैनधर्म-विषयक विशेष रुचि जागृत हुई । तव से वे जैनधर्म के अध्ययन में समय देने लगे।
इसके पूर्व वे आर्य-समाज के समर्थन में भाषण देते थे। कभी-कभी वे आर्यसमाज की ओर से जैनधर्म के सिद्धान्तों पर प्रहार भी किया करते थे। कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, सन् १९१० को आर्यसमाज, इटावा का वार्षिक उत्सव होने वाला था। उसमें आर्यसमाज के स्वामी सत्यप्रिय सन्यासी, पं० रुद्रदत्त शर्मा, स्वामी ब्रह्मानन्द आदि अनेक विद्वान् आए थे। उस समय कुंवर साहब ने इन विद्वानों के समक्ष अनेक शंकायें रखीं। ये अधिकतर वे ही थीं जो जैनियों की ओर से आर्यसमाज के विद्वानों के सामने रखी जाती थीं। वे इन शंकाओं का समुचित समाधान न कर सके। इससे कुंवर साहब के मन में जैनधर्म के प्रति और भी गहरी श्रद्धा हो गई।
इटावा में आर्यसमाज से शास्त्रार्थ करने के लिये वहाँ के वैद्य चन्द्रसेन जी ने पण्डित गोपालदास बरैया को आमन्त्रित किया था। उस शास्त्रार्थ के समय कुंवर साहब वहाँ उपस्थित थे। बरैयाजी को युक्तियों से वे बहुत प्रभावित हए । उन्होंने आर्यसमाज का परित्याग कर जैनधर्म में दीक्षित होने की घोषणा कर दी।
सोमवार, दिनांक १४ मार्च १९१० को इटावा में एक जैन सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें कवर दिग्विजय सिंह जी का जैनधर्म पर सर्वप्रथम हृदयग्राही एवं प्रभावक भाषण हआ। न्याय दिवाकर पं० पन्नालाल जी एवं पं० गोपालदास जी बरैया ने उनके भाषण की सराहना करते हुए उनका माल्यार्पण द्वारा सम्मान किया। जैनतत्व प्रकाशिनी संस्था, इटावा ने कुंवर साहब को जोवनी और उनका भाषण प्रकाशित किया। यह अब अनुपलब्ध है। ब्रह्मचर्य व्रत और जैनधर्म प्रचार
जनधर्म की दीक्षा लेने के पश्चात उन्होंने ब्रह्मचर्य ब्रत अंगीकार किया। अनेक वर्ष तक वे ऋषभ दि. जैन ब्रह्मचर्याश्रम (गुरुकुल), मथुरा में सेवा करते रहे और बाद में उन्होंने अपनो सेवायें भारतवर्षीय दि० जैन शास्त्रार्थ संघ को समर्पित कर दी । उन्होंने अपना जीवन जैनधर्म के प्रचार हेतु लगा दिया।
भा० दि० जैन संघ ने पहले तो शास्त्रार्थ संघ के नाम से अनेक स्थानों पर शास्त्रार्थ किये। पर जब आर्य समाज के विद्वान् स्वामी कर्मानन्द जैन बन गये, तब ये शास्त्रार्थ प्रायः बन्द हो गये। इसके बाद संघ ने जैनधर्म के
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