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जीवविचार प्रकरण और गोम्मटसार जीवकांड २६१
उच्छ्वासविष, निःश्वासविष, कृष्णसर्प, श्वेतसर्प, काकोदर, दर्भपुष्प, कोलाह, मेलिभिन्द, शेषेन्द्र । फणरहित सपं दस प्रकार के होते हैं : दिव्याक, गोनरु, कषाधिक, व्यतिकुल, चित्रली, मंडली, माली, अहि, अहिशलाका, वासपताका ।
अजगर एक ही जाति का होता है ।
आसालिक : तिर्यंच अनिष्ट के संकेत के रूप में सूक्ष्मरूप में उत्पन्न होते हैं और अपना वृहदाकार धारण कर अनिष्ट की सूचना देते हैं । इनकी आयु अन्तर्मुहूर्त की होती है ।
महोरग : चौदह प्रकार के होते हैं, जो इनके विस्तार पर निर्भर करता है। वे अंगुल, अंगुल पृथक्त्व (२-९ अं०), वितस्ति, वितस्ति पृथक्त्व (२-९ बीता), रनि, रलि पृथक्त्व (२-९ हाथ), धनुष, धनुष पृथक्त्व, गव्यूति, गव्यूति पृथक्त्व, योजन, योजन पृथक्त्व, योजनशत एवं सहस्र योजन वाले होते हैं ।
पंचेन्द्रिय नभचर तिर्यंच (पक्षी) चार प्रकार के हैं-चर्म पक्षी, रोम पक्षी, समुद्ग पक्षी, वितत पक्षो। इनमें बितत पक्षी एक ही प्रकार के होते है और मनुष्यलोक में नहीं पाये जाते । इसी प्रकार समुद्ग पक्षी भी एकजातीय हैं और मनष्यलोक के बाहर ही पाये जाते है । चर्म पक्षियों एवं रोम पक्षियों के क्रमशः आठ और चालोस प्रकार बताये गये हैं :
१. चमं पक्षो-बगुला, जलौका, अडिल्ल, भारंड, चकवा-चकवी, समुद्री कौवे, कर्णत्रिक एवं पक्षिविडाली-८ ।
२. रोम पक्षी-डंक, कंक, कुरल, कौवा, चकवा, हंस, कलहंस, राजहंस, पादहंस, अड़, सेड़ो, बगुला, वकपंक्ति, पारिप्लव, क्रौंच, सारस, मयूर, मसूर, मेसर, शतवत्स, गहर, पोंडरीक, काक, कामंजुक, बंजुलक, तोतर, बत्तक, लावक, कबूतर, कपिजल, पारावत, चिटक, चास, मुर्गा, तोता, मैना, बी, कोयल, सेह, वरिल्लक-४० ।
___ यह बताया गया है कि उपरोक्त भेद-प्रभेद मुख्य-मुख्य हैं। इनके समान अन्य तियेच भी हो सकते हैं, जिन्हें परीक्षा कर भिन्न-भिन्न जातियों में समाहित किया जा सकता है । इसीलिये प्रत्येक सूची के अन्त में 'इत्यादि' शब्द लगा हुआ है और उसमें समय-समय पर होने वाले निरीक्षणों के संयोजन के लिये स्थान छोड़ दिया गया है। तिर्यचों के भेदों के प्रभेद प्रज्ञापना में दिये गये हैं । दिगम्बर परम्परा में प्रभेदों का विवरण नहीं मिलता।
यहाँ यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि सामान्यतः तिर्यच दो प्रकार के होते हैं : विकलेन्द्रिय और सकलेन्द्रिय । विकलेन्द्रिय तिर्यंच एक, दो, तीन व चार इन्द्रिय जोन होते हैं और सकलेन्द्रिय तिथंच पंचेन्द्रिय होते है। पंचेन्द्रिय मनुष्यों का विवरण
शान्तिसूरि के अनुसार, गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के होते हैं : कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तर्वीपज । इन कोटियों के क्रमशः १५, ३० और २८ भेद होते हैं। शास्त्रों के अनुसार, गर्भज के अतिरिक्त, मनुष्य संमूर्छनजन्मी ( अलिंगी) भी होते हैं, जो मल, मूत्र, कफ, पीप, रक्त, शव, संभोग, नालीमल आदि गन्दे स्थानों में उत्पन्न होते हैं । ये असंज्ञो, सूक्ष्म और अन्तर्मुहूर्तायु के होते हैं। मनुष्यों के ये भेद क्षेत्र-निवास के आधार पर किये गये हैं। मनुष्यलोक के अढ़ाई द्वीपों के ५ भरत, ५ ऐरावत एवं ५ महाविदेह कमभूमियाँ कहलाती हैं । इसी प्रकार, अकर्ममूमियाँ भो ३० होतो है । ये भोगभूमि की कोटि को कल्पवृक्षी भूमियां हैं।
हमलोग कर्मभूमियों में निवास करने वाले मनुष्य हैं । ये समान्यतः दो प्रकार के है-आर्य और म्लेच्छ । आर्यों के गुणों के आधार पर दो भेद है-ऋद्धिप्राप्त और अनृद्धि प्राप्त । ऋद्धिप्राप्त आर्यों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, चारणमुनि, विद्याधर आदि समाहित होते हैं । सामान्य मानव जाति अनृद्धिप्राप्त आर्यों में गिनी जाती है । उसके नौ भेद एवं भनेक प्रभेद है
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