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२६० पं० जगन्मोहनलाल शास्त्री साधुवाद ग्रन्थ
[खण्ड (१) इन्द्रियां-भौतिक इन्द्रियों से इनकी इन्द्रियता पहचानी जा सकती है। उत्तरवर्ती इन्द्रिय वाले जीव के पूर्ववर्ती इन्द्रियाँ अवश्य होती है ।
(२) पादों को संख्या सामान्यतः दो इन्द्रिय जीवों को पैर नहीं होते। तोन इन्द्रिय जीवों के चार, छह या अधिक पैर होते हैं। चार इन्द्रिय जीवों के छह या आठ चरण होते हैं। पंचेन्द्रियों के दो, चार या आठ पैर होते हैं । मत्स्य, सर्प इत्यादि जीवों के विषय में ये नियम लागू नहीं होते।
(३) बालों का स्वरूप-दो इन्द्रिय जीवों के बाल नहीं होते। तीन इन्द्रिय जीवों के चेहरे के दोनों ओर बाल होते है । चार इन्द्रिय जीवों के सिर के दाहनी ओर सींग या केशगुच्छ होते हैं। पंचेन्द्रियों का विवरण : पंचेन्द्रिय तियंच
जैनों की दोनों परम्पराओं में पंचेन्द्रिय जीवों के चार भेद बताये गये हैं-नारक, देव, तिथंच और मनुष्य । इनमें नारक सात प्रकार के होते हैं और देव भवनवासी (१०), व्यंतर (८+ ८), ज्योतिष्क (५) और वैमानिक (२) के भेद से चार प्रकार के होते हैं । जैनों को दोनों परम्पराएँ किंचित् भेद-प्रभेदों के अन्तर के साथ इनको मानती है । जीव. विचार प्रकरण के टोकाकार ने व्यंतरों के आठ की जगह सोलह भेद बताये हैं।
हमारे लिये पंचेन्द्रिय तियंच और मनुष्यों का विवरण महत्वपूर्ण है। शान्तिसूरि के अनुसार, तिथंच तीन प्रकार के-जलचर, थलचर और नभचर होते है । जलचर के-सुसुमार, मत्स्य, कच्छप, मगर और ग्राह-पाँच भेद बताये गये हैं। प्रज्ञापना और उत्तराध्ययन में भी ये ही भेद हैं, पर प्रज्ञापना में इन जातियों के प्रभेद भी बताये गये हैं :
१. सुसुमार : यह जलचर भैंस के समान होता है। इनका आकार-प्रकार एक ही प्रकार का होता है।
२. मत्स्य : ये २३ जाति के होते हैं-श्लक्ष्ण, खबल, जंग, विजडिम, हल्डि, मकरी, रोहित, हलिसागर, गागर, वट, वटकर, गर्भज, उसागर, तिमि, तिमिंगल, नक्र, तंदुल, कणिका, शरलि, स्वस्तिक, लंभन, पताका और पताकातिपताका ।
३. कच्कप: ये दो प्रकार के होते हैं-अस्थिबहुल, मांसबहुल । ४. मगर : ये दो प्रकार के होते हैं-शौण्डमकर, मृष्टमकर । ५. ग्राह : ये पाँच प्रकार के होते हैं-दिली, वेष्टक, मूर्धज, पुलक और सीमाकार । पंचेन्द्रिय थलचर तिर्यच तीन प्रकार के होते हैं :
१. चतुष्पाद : के चार प्रकार है-एकखुर, दो-खुर, गंडीपद और सनखपद । इनमें एकखुर-तिर्यच अश्व, खच्चर घोडा, गर्दभ, गोरक्षर, कंदलक, श्रोकंदलक और आवतंक के भेद से आठ प्रकार के होते हैं । दो-खुरी तियंच ऊँट, गौ, गवय, महिष, मृग, रोज, पशुक, सॉभर, वराह, बकरा, एलक, रुरु, सरभ, चमरी गाय, कुरंग, गोकर्ण के भेद से १७ प्रकार के होते हैं। गंडीपद हाथी, हस्ति पूतनक, मत्कुण हस्ती, खड्गी और गंडा के भेद से पांच प्रकार के होते हैं । नखपदो तिर्यचों में सिंह, व्याघ्र, दोपड़ा, भालू, तरक्ष, पाराशर, कुत्ता, बिल्ली, सियार, लोमड़ी, खरगोश, कोलश्वान, चीता, चिल्लक आदि चौदह जातियां होती हैं ।
___२. भुज-परिसर्प : के चौदह प्रकार हैं-नेवला, गोह, गिरगिट, शल्य, सरठ, सार, खोर, छिपकली, चूहा, विसभरा, गिलहरी, पयोलातिक, क्षीर-विडालिका ।
३. उरः परिसर्प : चार प्रकार के हैं-सर्प, अजगर, आसालिक, महोरग । सांप दो प्रकार के होते हैं-फन वाले और फणरहित-फन वाले साँपों के १५ भेद है-आशीविष, दृष्टिविष, उपविष, भोगविष, त्वचाविष, लालाविष,
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