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जीवविचार प्रकरण और गोम्मटसार जीवकांड २५९
अस जीवों का विवरण : दो इन्द्रिय जीव
जैन दर्शन में जीवों का विभाजन ज्ञान के विकासक्रम पर आधारित है। स्थावर जीवों का ज्ञान निम्नतर कोटि का होता है और वे केवल स्पर्शनेन्द्रिय के माध्यम से ही संवेदनशील होते हैं। उसी के माध्यम से वे पांचों इन्द्रियों की अनुभति कर लेते हैं। इनसे उच्चतर संवेदनशीलता वाले जीव त्रस कहलाते हैं। ये दो इन्द्रिय, तीन, चार एवं पंचेन्द्रिय के भेद से मख्यतः चार प्रकार के होते है । जीव विचार प्रकरण में दो इन्द्रिय जीवों की ११ कोटियाँ गिनाई है। तीन इन्द्रिय जीवों की १६ कोटियां गिनाई हैं। चार इन्द्रिय जीवों की नौ और पंचेन्द्रिय जीवों की चार कोटियाँ बताई गई हैं, जैसा सारणी ३ में दिया गया है। उत्तराध्ययन और प्रज्ञापना से ज्ञात होता है कि शान्तिसूरि ने भेद-प्रभेद गिनाने में अति
सारणी ३ : त्रस जीवों के भेद-प्रकार
(अ) दो इन्द्रिय १. शंख २. कपर्दक या कौड़ी ३. गंडोलक (लंघु कृमि) ४. जलौका (गोंच) ५. चन्दनक ( समुद्र कृमि) ६. अलस (केंचुआ) ७. लहक (लार कृमि) ८. मेहरक (काष्ठ कृमि) ९. कृमि (आँत कृमि) १०. पूतरक (लाल कीट) ११. मातृवाहिका (चुडैला कृमि)
(ब) तीन इन्द्रिय १ कनखजूरा २. खटमल ३. जंआ ४. चींटी ५. सफेद चींटी (दीमक) ६. काली चींटी ७. इल्ली ८. घृत-इलिका ९. गौ-कर्ण-कीट १०. गर्दभक कीट ११. धान्य कीट १२. गोमय कीट १३. इन्द्रगोप कीट १४. सावा कीट १५ चौर कीट १६. कुंथुनगोपालिक कीट
(स) चतुरिद्रय त्रस १. बिच्छू २. टिंकुण ३. भौंरे और चींटियां ४. टिड्डी ५. मक्खी ६. डांस ७. मच्छर ८. कंसारिक
९. कपिलक (स) पंचेन्द्रिय जीव
१. नारक २. तियंच ३. मनुष्य ४. देव
सारणी ४ : विभिन्न शास्त्रों में त्रसों के भेद उ० अ० प्रज्ञापना
जीवविचार
मूलाचार
१६
द्विन्द्रिय त्रि-इन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पचेन्द्रिय
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संक्षेपण किया है। इसे सारणी ४ से जाना जा सकता है। दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में त्रसकायिक जीवों के भेद-प्रभेद कम ही पाये जाते हैं । मूलाचार और तत्वार्थसूत्र 'कृमि-पिपीलिका-भ्रमर-मनुष्यादीनामेकैकरद्धानि' के आधार पर केवल प्रारूपिक उदाहरण देते है। जीवविचार के टीकाकार ने बताया है कि विभिन्न त्रसजीवों को पहचानने के तीन उपाय है :
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