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________________ [२] 'बीजराज जी' पिता सुराना माता 'अनछीबाई थी देख सुलक्षण कन्या के न जाने खुशी समाई थी जैनागम का ज्ञान आपने गहरा गहरा पाया था . [८] किये अनेकों कण्ठ थोकड़े निर्मलमति का था न पार रक्खा याद हमेशा उनको बारम्बार चितार-चितार [९] भाषण में भी भारी रस था अणम अधिक सुनाते थे इधर-उधर की बातें करन यों ही समय बिताते थे उगनी सौ अड़ सठ सम्वत शुभ जन्म अष्टमी थी सुखकार झूम उठा था नगर कुचेरा झूम उठा था सब परिवार उगनीसौ नवासी, दशमीमाघ शुक्ल जब आई थी धूमधाम से नगर 'कुचेरा' दीक्षा जा अपनाई थी मन्त्री हजारी मुनीश्वर शास्त्रों के जो ज्ञाता थे हर इक बात बता-समझाकर दीक्षा सविधि प्रदाता थे शिष्या और प्रशिष्याओं को कहते-विद्यावती बनो शान्त, सुशीला, विनयवती बन इक नम्बर की सती बनो [११] 'चम्पाकंवर' 'बसन्त कंवरजी 'कंचन कंवर सती जी' और शीव्यायें ये तीनों समझो श्रमणी मंडल की सिरमौर । [१२] 'साध्वी चेतन प्रभा एम.ए.' 'चन्द्रप्रभा साहित्यरल' 'श्रमणी श्री अक्षय ज्योती जी 'सुमन सुधा जी सुधावचन जिनके जपकी तप की महिमा दूर-दूर तक छाई थी महासती सरदारकंवर-सी विदुषी गुरुणी पाई थी लेकर संयम समय सुनहरी क्षण न व्यर्थ गंवाया था (७०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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