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म.सा. संसार को ज्ञान रूपी प्रकाश प्रदान करने वाली गौरव शाली महान सतियों में से एक थी। आप का जीवन अनुपम था। आदर्श था। आप हर पल स्वाध्याय, थोकड़े, माला, ध्यान आदि में व्यतीत करती थी।
आपका स्वभाव बहुत ही शांत एवं सरल था। आपका मुख मंडल सदैव ही गुलाब के फूल की भांति खिला-खिला रहता था। आपने अपना जीवन समाज सुधार के लिये अर्पित कर दिया था। आपने भूले भटके मानवों को सही मार्ग बताने में कभी भी प्रमाद नहीं किया। आपने अपनी साधना से जैन जगत को सत्य मार्ग दिखाया। मुझ पर उनका जो उपकार है, उसे तो मै जीवन पर्यन्त नहीं भूल पाऊंगी। उनके नहीं रहने का दारुण समाचार सुनते ही मेरा रोम रोम कांप उठा और आंखों के सम्मुख अंधेरा छा गया। मैं उस समय अवाक रह गई। एक शब्द भी नहीं निकल पाया। सारा शरीर सुन्न हो गया।
यह जीवन बहती हई एक धारा के समान है। धारा किस समय किस ओर प्रवाहित हो जावे कहना कठिन है। ठीक यही स्थिति जीवन की भी होती है। इसमें भी अनेक मोड़ आते है। पड़ाव आते है। तब क्या हो जावे कहना कठिन है।
शहरों में बड़े बड़े भवन बनाने वाले मिल जावेंगे किंतु जीवन रूपी भवन का निर्माण करने वाले कम ही मिलेंगे। आप वास्तव में जीवन निर्माण की कला में दक्ष थे।
उनके जीवन में सरलता, मधुरता और वात्सल्य था अद्भुत संगम था। मैं जब जब भी उनके सारल्य और माधुर्य से ओतप्रोत जीवन का स्मरण करती हूँ, उनके स्मरण मात्र से आँखे नम हो जाती है। वे कितने महान थे। उनके हृदय में हमारे प्रति कितना स्नेह था।
गुरुणीजी के अचानक स्वर्गवास हो जाने से हृदय को गहरा आघात लगा। किंतु क्या किया जा सकता है। विधि के विधान के सम्मुख, क्रूर काल की गति के सम्मुख सिवाय मौन रहने और धैर्य धारण करने के अतिरिक्त अन्य कोई उपाय नही है।
गुरुवर्या संयम के क्षेत्र में सदैव जागृत रहते थे। वे जहां भी हो, उनसे यही प्रार्थना है कि मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करने की कृपा करें जिससे मैं उनके बताये मार्ग पर चलकर आत्म कल्याण कर सकू, अपने जीवन को सार्थक कर सकूँ। मेरी ओर से कोटि कोटि वंदन के साथ हार्दिक श्रद्धांजलि।
हार्दिक श्रद्धांजलि
• ताराचंद लोढ़ा, बालाघाट आज दि. ४-८-९१ को दोपहर फोन पर पू. श्री कानकुवंर जी म.सा. के देवलोक होने के समाचार सुनकर सभी स्तब्ध रह गये। सभी ने तत्काल चार चार लोगस्स का ध्यान कर श्रद्धा सुमन अर्पित किये। विधि की कैसी विडम्बना है, मैं दोनों बार मद्रास से आया और बाद में दोनों बार समाचार मिले, दोनों बार मेरी अंतराय बनी रही।
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