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________________ विहार में थे। किसी प्रकार की हमें कोई जानकारी नहीं मिली। गुरुदेव श्री युवाचार्य भगवन्त के साध्वी समाज में महासतीश्री जी का महत्वपूर्ण स्थान था। होनी को कौन रोक सकता है। इसी के आगे सभी मजबूर है। पूज्य गुरुदेवश्री ने कहा है हिम्मत और साहस का परिचय दें। साध्वी जी के स्वर्गवास से श्रमप संघ एवं व्यक्तिगत रूप से जयमल समुदाय में भारी कमी पड़ी है। स्वर्गस्थ आत्मा को चिर शांति के लिये पूज्य गुरुदेव पूज्य महासती मण्डल की तरफ से हार्दिक श्रद्धांजलि। श्रद्धा सुमन जतनराज मेहता, मेड़ता सिटी पूज्य युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी महासतीजी श्री कानकंवर जी म.सा. वय स्थविर, संयम स्थविर, ज्ञान, स्थविर, चरित्र स्थविर सरल हृदया मृदुभाषी थे। आपने जीवन के अनेक वर्ष शासन सेवा में एवं जीवन के उत्कर्ष की साधना में बिताये। श्रावकों के हृदयाकाश में आपके प्रति अटूट श्रद्धा थी। पूज्य पिताजी श्री प्रेमराज जी मेहता के हृदय में भी आपके प्रति गहरी भक्ति थी। समय समय पर जब भी मैं आपकी सेवा में जाता तब पूज्य पिताजी अपनी भक्ति भावना व अर्न्तहृदय की गहरी संवेदना प्रकट करते। आप श्री ने अनेक वर्षों तक मरुघरा की पावन धरा पर विचरण करने के पश्चात् महाराष्ट्र मद्रास जैसे सुदूर प्रान्तों में पधारकर वहाँ जयमल गणिवर की कीर्ति पता का फहराई। आपके प्रति हमारे परिवार की अटूट श्रद्धा भक्ति रही है। आपका भी सहज स्नेह, सौहार्द्र प्रेम सदैव मिलता रहा है। आज आप इस संसार में नहीं है किन्तु अनेकानेक श्रावकों के हृदय में आपकी ज्ञान ज्योति झलक रही है जिसका प्रकाश भौतिक युग में प्रेरणास्पद है। यह भी संयोग की बात है कि महासती जी श्री चम्पाकंवरजी म.सा. भी आपसे कुछ समय पूर्व ही स्वर्ग सिधार गये। आप भी अपनी गुरुवर्या श्री कानकंवर जी म.सा. की ही भांति मृदुभाषी, शासन सेवी, शान्त चित्त व सरल हृदया थे। आपकी ज्ञानाराधना के प्रति रुचि थी। अनुशासन में कठोरता आपके जीवन का सहज गुण था। सती द्वय के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। उपकारी गुरुवर्या • वैराग्यवती शकुन्तला, मद्रास __जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु एक दिन अवश्य होती है। मृत्यु के बाद भी स्मरण उसी का किया जाता है जिसने संसार को अपने ज्ञान से प्रकाशित किया हो। परमविदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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