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________________ ___ अन्त में सामूहिक ध्यान के बाद उनकी आत्मा को चिरशान्ति की प्राप्ति की कामना के साथ श्रद्धांजलि अर्पित की गई। मूलचन्द सुराणा अध्यक्ष, श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ, नागौर (राज.) महासती जी श्री कानकंवरजी म.सा. को श्रद्धांजलि . श्री संघ बालाघाट (म.प्र.) युवाचार्य स्व. श्री मधुकरमुनिजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी वयोवृद्धा महासतीजी श्री कानकंवर महाराज साहब के महाप्रयाण का समाचार मद्रास निवासी सिद्धेचंदजी लोढ़ा द्वारा टेलीफोन से प्राप्त होते ही बालाघाट जैन समाज स्तब्ध रह गया। श्री बीजराजजी सुराणा कुचेरा (राज.) की सुपुत्री श्री कानकुंवरजी ने २२ वर्ष की यौवनाव्सथा में जैनश्वरी भगवती दीक्षा अंगीकार की। साधना काल के ६० वर्षों में आपने “तिण्णाणं-तारयाणं" के भाव को चरितार्थ करते हुए जनमानस में धर्महित के प्रति चेतना जागृत की । सरल स्वभाव, मृदृभाषी, सेवाभावी आदि अनेक मानवीय गुणों से सम्पन्न, दया, प्रेम व स्नेह की साक्षात यह प्रतिमा, राजस्थान महाराष्ट्र म.प्र. आदि प्रदेश का विचरण कर अंत में मद्रास स्थित साहुकारपेठ जैन स्थानक भवन में शारीरिक अस्वस्थता के कारण पिछले ४-५ वर्षों से विराजमान थी। लगभग ५ माह पूर्व दिनांक १७-३-९१ को आपकी विदुषी सुशिष्या श्री चंपाकुंवरजी म.सा. के आकस्मिक देहावसान के दुख से आपकी सुशिष्यायें व जैन समाज उबर भी न पाया था कि ४-८-९१ को आपका महाप्रयाण हो गया। दिनांक ६-८-९१ को संघ के प्रमुख ट्रस्टी श्री चंदनमल जी मोदी की अध्यक्षता में जैन स्थानक भवन में श्रद्धांजलि सभा हुई। जिसमें प्रकाश बागरेचा, सौ. तारादेवी कांकरिया ने सन् १९८३ में बालाघाट में सम्पन्न आपके चातुर्मास के संस्मरणों को याद कर श्रद्धांजलि व्यक्त की। हाल ही में मद्रास प्रवास के समय हुई आपसे वार्ता का जिक्र करते हुए ताराचंदजी लोढ़ा ने उनके विशाल व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए भावाजंलि व्यक्त की । चंदनमलजी मोदी ने कहा कि आपका पितृपक्ष परिवार बालाघाट जिले (कटंगी) में होने से आपका विशेष लगाव बालाघाट के प्रति रहा है। सुभाष लोढ़ा ने श्रद्धासुमन समर्पित करते हुए कहा कि आपके महाप्रयाण से जहां एक ओर श्री बसंतकुंवरजी आदि सुशिष्याओं को प्राप्त आपके वरदहस्त से वंचित होना पड़ा है वहीं जैन समाज ने करुणानिधि संत रत्न को खोया है। अंत में अनन्त में विलीन आपकी आत्मा को चिरशांति. प्राप्ति की मंगलभावना के साथ चार सोगस्स का ध्यान कर सभा विसर्जित (४१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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