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________________ काम, क्रोध, जल, आरसी, शिशु त्रिया, मद फाग। होत सयाने बावरे, आठ बात चित्त लाग॥ अत: यह आत्मत्तव अर्थात् अपने चेतन देव को चाहिए कि कुबुद्धि के मोह में न पड़े और उसके पंजे से छुटकारा पाकर सुबुद्धि को अपनी सेवा में रखे जो उसे कल्याणमार्ग बताएगी। अपने स्वरूप का मान कराएगी. अनिष्टों. दर्गणों. दर्व्यसनों और भंयकर पापों से उसे बचाएगी, दःखों से त्राण करेगी, धर्माचरण में लगाकर उसे मुक्ति की अधिकारी बनाएगी। पाँच इंद्रियों में समभाव लाकर सुबुद्धि मनुष्य को कर्मबंधन से बचा देगी। इसी सुबुद्धि की शरण में जाने के लिए और वैषयिक सुखरूपी फल की चकाचौंध में न फंसने के लिए गीता कहती है - 'बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतव।" अतः जो मनुष्य अच्छे खानपान भड़कीली पोशाक और मौज शौक में पड़कर अपनी इंद्रियों को व्यर्थ के कामों में लगाता है, अपनी सुबुद्धि रूपी स्त्री की सलाह नहीं लेता, उससे पूछता तक नहीं, वह धिक्कार का पात्र बनता है, वह यदि सदा रह जाय तो कौन बंधनों से मुक्त न हो। पश्चाताप के समय जैसी बुद्धि होती है, वह यदि पहले हो जाय तो हर एक को मोक्ष मिल जाए। आग्रह न करना ही बुद्धि का फल है। असल में बुद्धि का फल है - तत्व का विचार करना और मनुष्य देह पाने का सार है - व्रतधारण करना। कहा हुआ तथ्य तो पशु भी ग्रहण कर लेते है। - प्रेरणा के अनुसार घोड़े-हाथी चलते ही हैं। बुद्धिमान व्यक्ति बिना कहे अर्थ जान लेता है। दूसरे के इंगित का ज्ञान कर लेना ही बुद्धि का फल है। जो बार-बार पूछता है, सुनता है और दिन रात याद करता रहता है। सूर्य-किरणों के कमलिनीवत उसकी बुद्धि बढ़ती है। सुनने की इच्छा करना, सुनना, सुनकर तत्व को ग्रहण करना, ग्रहण किए हुए तत्व को हृदय में धारण करना, फिर उस पर विचार करना अर्थात् उसे तर्क की कसौटी पर कसना, विचार करने के पश्चात उसका. सम्यक् प्रकार से निश्चय करना, निश्चय द्वारा वस्तु को समझना, अंत में उस वस्तु के तत्व की जानकारी करना - ये आठ बुद्धि के गुण हैं। आज अधिकांश लोग बुद्धि का फल मानते हैं - चालाकी, ठगी, बेईमानी, रिश्वतखोरी, झूठफरेब, शोषण, अन्याय, अनीति आदि के द्वारा धन बटोरना. इज्जत पाने के लिए तिकडमबाजी करना और दनियादारी के काम करके कछ लोगों को अपनी और खींच लेना। एक राजनीतिज्ञ अपनी बद्धि का फल चाहता है - किसी प्रकार से देश में तोड़फोड़, दंगे, उपद्रव, जानमाल की हानि तथा दूसरे पक्षों, खासकर सत्तासीन पक्ष की अतिशय निंदा करके येन केन प्रकारेण चनाव में जीतना और सत्ता प्राप्त करना। एक वैज्ञानिक अपनी बुद्धि का फल नरसंहारक अस्त्र शस्त्रों का निर्माण करके पैसा और प्रतिष्ठा प्राप्त करने में मानता है। एक इंजीनियर खराब से खराब वस्तुएं या कम वस्तुएं बाँध, सड़क, मकानात आदि में लगाकर, बीच में लाखों करोड़ों रुपये खाकर अपना घर बनाने में ही बुद्धि का फल मानता हैं। एक वकील वादी और प्रतिवादी दोनों को लड़ाकर या झुठा मुकदमा लेकर अपने मवक्किल से किसी न किसी प्रकार से पैसा खींचना ही अपनी बुद्धि का फल मानता है। एक डॉक्टर रोगी का रोग ठीक करने के बजाय, उसे अधिक दिन रुग्णशय्या में रखकर, भारी बहम में डालकर, रोग को बढ़ाकर या बढ़ा चढ़ा कर कहकर, नकली दवाइयाँ या इंजेक्शन देकर अधिक से अधिक पैसा बनाना ही बुद्धि का फल समझता है। एक अध्यापक या प्राध्यापक विद्यार्थी को अच्छी तरह न पढ़ाकर, उसके यहाँ ट्युशन करके, रिश्वत लेकर पास करा देने, कम से कम विद्या देकर विद्यार्थी को ढीठ रखने में ही बुद्धि का फल मानता है। एक व्यापारी चोर (२३२) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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