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लाल रक्त मज्जा या मज्जा प्राणी के शरीर में पाई जाने वाली लबी हड्डियों के दोनों छोरों पर ही मिलता है। प्राणी के शरीर के हाथ पाँव की हड्डियाँ ज्यादा लंबी होती है अर्थात इन हड्डियों में ही मज्जा पाया जाता है। अतः हम यह नहीं कह सकते हैं कि मज्जा का निर्माण अस्थि धातु से ही होता है। कुछ रोगों की अवस्था में मज्जा नष्ट होने लगता है क्योंकि इन रोगों को उत्पन्न करने वाले रोगाणु मज्जा का ही भक्षण करने लगते हैं मज्जा के नष्ट होने की स्थिति में लाल रक्त कण का निर्माण होना बंद हो जाता है फलतः जीव धीर-धीरे मर जाता है।
(७) वीर्य धातु - प्राणी के शरीर में पाए जाने वाले सप्त धातुओं में से वीर्य धातु के अतिरिक्त अन्य छ: धातुएं किसी न किसी रूप में शरीर का निर्माण से जुड़ी रहती है परंतु वीर्य धातु इस शरीर की उत्पत्ति का ही कारण बनता है अर्थात इसके कारण ही जीव को शरीर मिलता है। इस संसार में सामान्य रूप से दो प्रकार के प्राणी मिलते है - नारी और पुरुष। इन दोनों के शरीर में सप्तधातएँ पाई जाती है। जब ये नारी और पुरुष परस्पर मिलते है तो उनके इस मिलन को सहवास या संभोग कहा जाता है। इस प्रक्रिया के अनंतर दोनों के वीर्य मिलते है जिससे एक नवीन शिशु की उत्पत्ति होती है, फिर यह शिशु इसी प्रक्रिया के अनंतर एक नया शिशु उत्पन्न करता है, इस तरह से शिशु पर शिशु की परपंरा चलती रहती है। तात्पर्य यह है कि वीर्य धातु जो प्राणी के शरीर में पाया जाना एक नए शरीर निर्माण की क्षमता रखता है।
योगशास्त्र के अनुसार वीर्य धातु की उत्पत्ति मज्जा धातु से मानी गई है। आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से योगशास्त्र में वीर्य धातु के संबंध में उल्लेखित यह मत कभी भी मान्य नहीं हो सकता है। क्योंकि वीर्य धातु की जहाँ उत्पत्ति होती है वहाँ मज्जा धातु बनता ही नहीं। नर में वीर्य धातु नरज
नरजननांग में बनते है तथा मादा में मादा जननांग में। ये दोनों ही अंग पेट के नीचे पाये जाते हैं। नर और मादा वीर्य कहाँ बनते हैं यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है, लेकिन उसका वर्णन संभव नहीं है। नर और मादा वीर्य कैसे होते हैं इसका वर्णन किया जा सकता है।
नरवीर्य को शुक्राणु कहते है। यह एक अत्यंत सूक्ष्म जीव है। यह तीन भागों में बटा रहता है - सिर, गर्दन और पूंछ। पूंछ की सहायता से यह गति करता तथा सिर की सहायता से मादा वीर्य के साथ संपर्क करता है और उसके साथ मिलकर नए शिशु उत्पन्न करने के लिए उपयुक्त वातावरण बनाता है। मादा वीर्य डिम्ब के नाम से जाना जाता है। यह शुक्राणु से आकार में बड़ा होता है। सहव सके अंनतर पुरुष द्वारा स्खलित शुक्क्रीत नर जननांग से होता हुआ डिम्ब के अंदर प्रवेश करता है। जब शुक्क्रीत डिम्ब के अंदर प्रवेश कर जाता है तब वह डिम्ब निषेचित डिम्ब कहलाता है। यह निषेचित डिम्ब ही कई प्रक्रियाओं से गुजरकर एक नए शिशु को उत्पन्न करता है।
इस तरह से जैनो द्वारा प्रतिपादित सप्तधातु की अवधारणा की वैज्ञानिक व्याख्या की गई।
संदर्भ
१.
शरीर पर्याप्तिः सप्तधातुतया रसस्य परिणमनशक्ति : -
- -स्थानांग, अभयवृति, ७२ रसासग्यमांसमेदोऽस्थिमज्जा शुक्रववर्चसाम् - योगशास्त्र, ४/७२
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