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________________ हड्डी बताया गया है। १८ अतः यह स्पष्ट है कि अस्थि की उत्पत्ति मेद या चवीं से होती है। वैज्ञानिकों का मत इससे भिन्न है। वे अस्थि को मेद या चर्वी से उत्पन्न होना नहीं मानते है। उनका कहना है कि अस्थि एक कठोर धातु है और यह कैल्शियम मैग्निशियम आदि रासायनिक तत्वों के कार्बोनेट फोस्फेट से बना है। इन रासायनिक तत्वों का सामान्य बोलचाल की भाषा में चूना कहा जाता है। ' जीव के शरीर में जितने भी धातु पाए जाते है उन्हें वैज्ञानिक संदर्भो में कोशिका कहा जाता है। अस्थि भी एक धातु है इस कारण इसे भी कोशिक माना जाता है। ये कोशिकाएँ बहुशाखावित होती है और इस शाखाओं में एक विशेष प्रकार का तत्व भरा रहता है जिसे मैट्रिक्स कहा जाता है। प्राणी जब शैशवावस्था या भ्रूणावस्था में रहता है तो उसके शरीर में पाई जाने वाली अस्थियाँ अत्यंत मुलायम होती है और इस कार्टिलेज के नाम से जाना जाता है। जब शिशु वृद्धि करता है तब उसकी हड्डियों कठोर हो जाती है और यही कठोर भाग पूर्ण अस्थि कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते है कि प्राणी के शरीर में दो प्रकार की हड्डियाँ पाई जाती है। १.मुलायम जिसे कार्टिलेज कहा जाता है और २. कठोर जिसे अस्थि या हड्डि के नाम से जाना जाता है। जीव के शरीर में जो अस्थि पाई जाती है वह खोखली होती है। खोखली होने के कारण इनका वजन कम होता है। यद्यपि यह खोखली होती है, परंतु इसकी मजबूती में किसी तरह की कमी नहीं पाई जाती। इसका मुख्य कारण चूने के लवण है जो इन्हें मजबूती प्रदान करते हैं। इसके खोखला होने के कारण है। अगर हड्डी पूरी तरह ठोस होती तो इसका भार काफी ज्यादा होना और संभव था कि प्राणी इस अत्यधिक भार को वहन नहीं कर पाता फलतः वह अपने कार्यों का सम्पादन समुचित ढंग से नहीं कर पाता। इसके साथ ही साथ इन खोखले स्थानों में लाल अस्थि मज्जा भरी रहती है। जिसमें रुधिर वाहिनियाँ होती है। इनसे भोजन ग्रहण कर कुछ विशेष कोशिकाएँ विभाजन करती है फलस्वरुप हड्डियाँ बढती है। हड्डी के कारण ही प्राणी चलता है, भार उठाता है, बैठता है। शरीर के कुछ संवेदनशील एवं कोमल अंग हड्डी के द्वारा रक्षित होते है जैसे हृदय फेफ़डा आदि। देखना सुनना आदि भी अस्थि के सहयोग से ही संभव है। क्योंकि आंखे हड्डी के बने गोले के अंदर ही रहती है और सम्यक् रूप से चलती है जिसके कारण प्राणी छोटे-बड़ी सभी चीजों को देख पाता है। ध्वनि के प्रकंपन के कारण कान में बने हड्डी के हथौडे कान के परदे पर चोट करते हैं जिसके कारण प्राणी ध्वनि को सुन पाता है। थोडे से में कहें तो हम यही देखते हैं कि अस्थि प्राणी के लिए अत्यंत महत्व की चीज है। (६) मज्जा धातु • जैनों ने सप्तधातुओं में मज्जा को छठे स्थान पर रखा है मज्जा को जैनों ने धात माना है लेकिन आयर्वेदाचार्यों ने इसे उपधात माना है। अतः मज्जा धातु है या उपधातु यह एक शोध का विषय है, लेकिन यहाँ हम मज्जा मानकर ही चल रहे हैं। इस धातु की उत्पत्ति अस्थि धातु से मानी गई है। परंत विज्ञान जगत के लिए यह बात मान्य नहीं है। मज्जा धात अस्थि के पोले भाग में पाई अवश्य जाती है तथा इसका निर्माण भी वही होता होगा लेकिन इसका यह अर्थ नहीं लगाया जा सकता है कि यह अस्थि धातु से उत्पन्न होता है। इसकी उत्पत्ति कैसे होती है इस संबंध में अभी शोधकार्य चल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने अपने शोध के अनुक्रम इस धातु के संबंध कई महत्वपूर्ण खोज किए है - अस्थि में पाई जानी वाली मज्जा धातु लाल रक्त कण का निर्माण करती है (जबकि जैनों ने रक्त का निर्माण रस धातु से होना माना है) बच्चों के शरीर में पाई जानी वाली इस धातु का रंग लाल होना जबकि वयस्कों में इसका रंग पीत वर्ण का होता है। (२१७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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