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________________ स्वप्न-मनोविज्ञान और मानव अस्तित्व • डॉ. वीरेन्द्र सिंह स्वप्न मनोविज्ञान का आधुनिक अध्ययन वैज्ञानिक-पद्धति के द्वारा फ्रॉयड ने तथा बाद में युग तथा एडलर ने अपने तरीके से किया जो यह तथ्य प्रकट करता है कि स्वप्न बिम्बों के विश्लेषण एवं मनोवैज्ञानिक 'सिटिंग्स(Sittings) के द्वारा रोगी की मानसिक चिकित्सा की जा सकती है। यह तथ्य एक अन्य बात की ओर सांकेत करता है कि प्रत्येक स्वप्न का अपना अर्थवान् मनोवैज्ञानिक संरचना का संसार होता है जो उसके जागृत संसार से किसी न किसी रूप से सम्बंधित रहता है। इस पूरी स्थिति को माण्ड्क्योपनिषद् में इस प्रकार रखा गया है -"स्वप्न दर्शन का कारण विगत संस्कार (अचेतन रूप) ही माने गए हैं और 'देवमन' स्वप्नावस्था में अपनी महिमा का ही अनुभव करता है। यह 'देवमन' मानव का मनस् (Psyche) ही है जो भारतीय मनोविज्ञान में एक इंद्रिय है जो अन्य इंद्रियों से उत्कृष्ट है -सभी इंद्रिया इसी 'मन' में एकीभूत रहती हैं। स्वप्नावस्था में मन (अचेतन चेतन) अपनी विभूतियों (इच्छाओं, कामनाओं या दमित इच्छाएं) का बिम्बात्मक विस्तार करता है जो संस्कार के रूप में अचेतन मन में अवस्थित रहती है। यही कारण है कि स्वप्न-बिम्बों को पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है। फ्रॉयड आदि ने स्वप्न बिम्बों को काफी सीमा तक विश्लेषित करने का प्रयत्न किया है, लेकिन अब भी शायद हम यह दावा नहीं कर सकते कि हमने अचेतन-मन के रहस्यों को पूरी तरह से जान लिया है। शायद ज्ञान की यही प्रकृति है कि उसे पूरी तरह से, अंतिम रूप से जाना नहीं जा सकता है। इसके बावजूद भुंग ने इन स्वप्न प्रतीकों का जो विवेचन-विश्लेषण किया है, वह इन्हें ध्येययुक्त और सामिप्राय मानता है और साथ ही, उसका यह भी विचार है कि स्वप्न प्रतीकों में एक श्रृंखला भीभिहती है। उनके पीछे कोई न कोई 'अर्थ' छिपा रहता है। र फ्रॉयड ने इन स्वप्न प्रतीकों को कामेच्छा या सेक्स से ही जोड़ा जबकि युंग आदि ने स्वप्नों को मात्र सेक्स से न जोड़कर अन्य महत्त्वपूर्ण मानवीय इच्छाओं और क्रियाओं से सम्बंधित किया। युंग ने कामेच्छा के स्थान पर 'लीबीडो' (Libedo) शब्द का प्रयोग किया जो सेक्स से कहीं व्यापक अर्थ को संकेतित करता है। भारतीय विचारधारा में 'काम' शब्द जीवन-ऊर्जा या सृजन ऊर्जा का पर्याय है जो ‘लीबीडो' के समीप है। पाश्चात्य जगत में इसे 'इरास' (Eros) की संज्ञा भी दी गयी है जो हमारे यहाँ 'रति' और 'काम' का सूचक है। इसी के साथ एक तथ्य यह भी है कि व्यक्ति का स्वप्न-दर्शन ही नहीं वरन् उसकी सभी चेतन अचेतन क्रियाओं का वैसा ही स्वरूप प्राप्त होता है जैसा कि उसका 'विज्ञान' है। इसी विज्ञान-तत्व पर जीव या व्यक्ति की स्मृति का रूप गठित होता है जो संस्कारजनित होते हैं। ये स्मृतियाँ अपना अभिव्यक्तीकरण अनेक स्वप्न बिम्बों के द्वारा करती हैं। फ्रायड के १. २. उपनिषद् भाष्य, खंड २, पृ. ३१-३२। साइकोलॉजी ऑफ दि अन्कान्सेस, गुंग, पृ.७ (१८१) Jain Education International For Private &Personal Use Only .. . www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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