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समत्व भाव राग-द्वेष विच्छिन्न करने वाला है। और राग द्वेष के विच्छिन्न होने पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है।
_ 'आचारांग' और कबीर-वाणी का विविध प्रसंगों परिस्थितियों आदि का अध्ययन-मनन करने पर यह कहने में कोई आपत्ति नहीं कि दोनों रचनाएं सामाजिक, लौकिक जीवनोन्मुखी और अध्यात्मोन्मुखी हैं। आचार तथा शीलतत्व का यहाँ सम्यक निरूपण हुआ है। यहाँ जीवन के नाना रूपों का कर्म, अहिंसा हिंसा, परिग्रह, ब्रह्मचर्य आदि की विशदता से परिचर्चा की गई है। 'आचारांग' व्यक्ति का बाह्य तथा आन्तरिक परिष्कार करता है, कबीर के सिद्धान्त भी हमारे संस्कारों, मनोवृत्तियों का अभिमार्जन करते हैं। इन महत्वपूर्ण रचनाओं का गहन चिन्तन-मनन करना अनुसन्धानकर्ताओं के लिए आवश्यक है।
पो. बालैनी BALENI मेरठ (Meerat) UP
पिन -२५०६२६
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ज्ञान आत्मा का स्वभाव हैं । वह लिया अथवा दिया नहीं जाता। शिक्षक अथवा धर्मगुरू इसे सिर्फ जगाते हैं। यानी वह दिया लिया नहीं, वरण जगाया जाता हैं। अगर उसे जाग्रत न किया जाए तो वह आवृत, अनमिव्यक्त या दबा पड़ा रहता हैं।
• युवाचार्य श्री मधुकर मुनि
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