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लिए दू आचारांग सूत्र १/३/२, १/३/३ में स्पष्ट कहा गया है कि सत्य में मन की स्थितरता करो, जो सत्य का वरण करता है वह बुद्धिमान पाप कर्मों का क्षय कर देता है। सत्य की आज्ञा में विचरण करने वाला साधन इस संसार से पार हो जाता है।
सत्य महाव्रत के अन्तर्गत पाँच भावनाओं का विधान है जिनका पालन करना चाहिए -(१) विचार पूर्वक बोलना चाहिए, (२) क्रोध का त्याग करके बोलना चाहिए, (३) लोभ का त्याग करके बोलना चाहिए, (४) भय का त्याग करके बोलना चाहिए, और (५) हास्य का त्याग करके बोलना चाहिए। १०
अस्तेयवत - स्वार्थ वश अन्य व्यक्तियों के धन आदि पदार्थों का बिना अनुमति के ले लेना स्तेय अथवा चौर्य के अन्तर्गत माना जाता है। इसका सर्वथा परित्याग करना अस्तेय कहलाता है। चौर्य को एक प्रकार की हिंसा ही मानी गई है। प्रश्न व्याकरण सूत्र में कहा गया है कि आदत्तादान (चोरी) संताप, मरण एवं भय रूपी पातकों का जनक है। दूसरे के धन के प्रति लोभ उत्पन्न करता है। चोरी करना अपयश का कारण होता है। आत्म रहस्य पुस्तक में लिखा गया है, “यदि कोई सम्पत्ति या वस्तु सुपुर्द की जाएं उस वस्तु को हड़प कर लेना या थोड़ा देना भी चोरी में सम्मिलित है। चोरी किये हुए भूषण आदि वस्तुओं को थोड़े से मूल्य में ले लेना भी चोरी ही है। दूसरे मनुष्यों को चोरी करने की प्रेरणा करना, उत्तेजना देना, चोरी डाके आदि कार्यों की प्रशंसा करना सर्वथा अनुचित है। दूसरे व्यक्ति की वस्तुओं को दबाव डालकर, धोखा देकर या बहलाकर ले लेना भी इस अचौर्यव्रत के विरुद्ध है। किसी अन्य व्यक्ति की अज्ञानता, दुर्व्यवस्था या मूर्खता से लाभ उठाकर उस की बहुमूल्य वस्तु को कम मूल्य देकर ले लेने से भी इस व्रत में दूषण आता है। अनुचित लाभ उठाने के लिए चुंगी से बचने के हेतु छिपाकर वस्तु को नगर में लाना, चुंगी के अफसरों को बनावटी बीजक दिखाकर कम चुंगी देना, बनावटी बही खाता दिखलाकर इनकम टैक्स अधिकारी से कम नियत इनकमटैक्स नियत कराना रेल में बिना टिकिट चलना या नीचे श्रेणी का टिकट लेकर ऊंची श्रेणी के डिब्बे में बैठ कर जाना, बढ़िया श्रेणी की वस्तु में घटिया श्रेणी की वस्तु मिला देना, छोटे गज से नाप देना, तोल में कम दे देना आदि बातें चौर्य कर्म में सम्मिलित है।"११
जैन धर्म-दर्शन में स्तेय को चार भागों में विभाजित किया गया है (१) द्रव्य क्षेत्र (३) काल (४) भाव। द्रव्य में सजीव निर्जिव वस्तुओं को रखा गया है। क्षेत्र में गृह, भूमि, खेती आदि को गिनाया जाता है। काल में वेतन, ऋण आदि में कमी-बेशी करने की बातों को लिया जाता है और भाव में किसी लेखक की रचना, चाहें वह कविता, लेख अथवा निबन्ध हो, चुराने को लिया जाता है। इस कारण स्तेयव्रत का प्रावधान समाज एवं व्यक्ति दोनों के लिए लाभप्रद है।
ब्रह्मचर्यव्रत - जीवन में ब्रह्मचर्य का बहुत अधिक महत्व है। पाँचों महाव्रतों में ब्रह्मचर्य जीवन में एक विशेष स्थान रखता है। ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मचर्य व्रत भंग हो जाने पर सभी व्रत तत्काल भंग हो जाते हैं। प्रश्न व्याकरण सूत्र में बताया गया है कि ब्रह्मचर्य व्रत के भंग होने से सभी व्रत नियम, शील, तप, गुण आदि दही के समान मथित हो जाते हैं, चूर-चूर हो जाते हैं, उनका विनाश हो जाता है। १२ प्रश्न व्याकरण सूत्र के आधार पर ही डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं -“ब्रह्मचर्य उत्तम तप नियम, ज्ञान,
१०. ११. १२.
जैन, बौद्ध तथा गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. सागरमल जैन, पृ. ३३४। आत्म रहस्य- रतनलाल जैन, पृ. १५१-१५२। प्रश्न व्याकरण सूत्र, ९
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