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यंत्र के लेखन में प्रायः अष्ट गंध का ही प्रयोग किया जाता है। (श्वेतचंदन, रक्तचंदन, गोरचन, कपूर, कस्तूरी, अगर, हाथी का मद या इसके अभाव में इसमें से कोई एक) लिखते समय कलम का भी अपना महत्व होता है, शुभ कार्यों में सोना, चांदी, आर्कषण, जामुन, वशीकरण क्रश स्तंभन के लिये बरगद आदि।
यंत्र लेखन की साधना में शारीरिक मानसिक पवित्रता की पूरी सजगता होनी चाहिये। इसकी असावधानी से यंत्र लाभकारी नहीं हो सकेगा। इस काल में सात्विक भोजन, एंकात शांत वातावरण, लेखन के पश्चात् सुंगधित द्रव्य से उसकी शुद्धि आदि इन नियमों का पालन करने वाला साधक निःसंदेह सफलता प्राप्त कर सकता है।
यंत्रों का भौतिक आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार से उपयोग किया जा सकता है, साधक को आध्यात्मिक दृष्टि से ही चिंतन मनन, कर आत्मिक उत्थान में इनका सहयोग प्राप्त कर सकता है। यहाँ कुछ जैन यंत्रों की रचना दे रहे हैं (विशेष जानकारी गुरुगम को)
पैंसठ यंत्र (चौबीसजिन यंत्र)
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यहाँ २५ का अंक प्रभु का सूचक है। इस यंत्र का नहीं चौबीस जिन स्तोत्र १३-१४-३० (धनतेरस से दीपावली ३ उपवास) तक १०८ बार जापकर के अष्ट गंध से दीपावली की रात्रि में या जैसी सुविधा हो वैसे लिखकर सुगंधित द्रव्यों से वर्षित कर उपयोग में लेने से मन वांछित फल, भय दुःख दूर होते हैं।
(विशेष गुरुगम)
___ इसी प्रकार १६ सती यंत्र की आराधना है, उसका भी स्तोत्र पाठ उपरोक्त विधि से यंत्र बनाकर घर के प्रवेश द्वार पर लगाने से सभी प्रकार के संकट विन बाधायें दूर होती, भूत प्रेत आदि का भय दूर होता है। (श्रद्धा प्रधान है) -
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