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________________ दिगम्बर ग्रन्थों में वाचना के चार प्रकार इस प्रकार बताए गए हैं-(१) नन्दा, (२) भद्रा, (३) जया, (४) सौम्या। २५ नन्दा - अन्यदर्शनों को पूर्व पक्ष के रूप में उपस्थापित कर स्व (जैन) मत को सिद्धान्त रूप में उपस्थापित करने की वाचना 'नन्दा' है। २७ भद्रा - युक्तिपूर्वक समाधान कर पूर्वापर-विरोध को हटाते हुए समस्त पदार्थों की व्याख्या 'भद्रा वाचना' है। सूत्रार्थका पूर्वापर-संगित के साथ अपने लिए ज्ञान से, तथा दूसरों के लिए वचनों से निर्गमना (निर्यापना-अर्थ-निरूपणा) वाचना-सम्पद कही जाती है। ३८ जया - पूर्वापर-विरोध-परिहार के बिना सिद्धान्त-अर्थों का कथन 'जया' वाचना है। ३९ सौम्या - कहीं-कहीं स्खलनपूर्ण वृत्ति से, (थोड़ा-थोड़ा भाग छूते हुए) की जाने वाली वाचना 'सौभ्या' है।४० ‘वाचना' की स्थिति में शिष्य को मान, क्रोध, प्रमाद, आलस्य आदि से रहित होना चाहिए। ४१ वाचना का फल • गुरु द्वारा वाचना (अध्यापन) के निम्नलिखित लाभ शास्त्रों में वर्णित हैं - (१) श्रुत (शास्त्र) का संग्रह (शास्त्र-ज्ञान भण्डार में वृद्धि)। (२) शास्त्र-ज्ञान से उपकृत शिष्य के मन में शास्त्र-सेवा करने की भावना का प्रादुर्भाव। (३) श्रुत की उपेक्षा के दोष से सुरक्षा, श्रुत के अनुवर्तन से अनशातना-ज्ञान का विनय। ज्ञान-प्रतिबन्धक कर्मों की निर्जरा, संस्कार-क्षय। चरम साध्य की उपलब्धि। (५) अभ्यस्त शास्त्र में स्थिरता। निरन्तर शास्त्र-वाचना से 'सूत्र' को विच्छन न होने देना। फलतः तीर्थधर्म का अवलम्बन-धर्मपरम्परा की अविच्छिन्ता। ४२ रत्नत्रय (सम्यग्दर्शनादि) की संसिद्धि। (८) मिथ्यात्व का नाश एवं सत्य को प्राप्त करने की तीव्र जिज्ञासा-वृत्ति का उदय।। ३६. धवला ९.४.१.५४१ ३७. वही, पूर्वोक्त। ३८. उत्त. १.५८ नियुक्ति शांति-सूरि वृत्ति। ३९. वहीं। पूर्वोक्त। ४०. वहीं, पूर्वोक्त। ४१. उत्त. ११.३। ४२. स्थानांग ५.३.५४१॥ ४३. वायणा एणं भंते कि जणायइ? निज्जर जणायइ। सुयस्य अणासायना एवम् सुयस्य अणासायणाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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