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________________ २९ जैन शास्त्रों में स्वाध्याय के पांच अंग बताए गए हैं। तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार १. वाचना, २ . पृच्छना, ३. प्रतिपृच्छना ( अनुप्रेक्षा), ४. आम्नाय ५. धर्मोपदेश-ये पाँच अंग हैं ( भगवती सूत्र ), मूलाचार आदि के अनुसार १. वाचना, २. पृच्छना, ३. परिवर्तना, ४ कथा - ५ अंग 1 । व्याख्याप्रज्ञप्ति अनुप्रेक्षा, ५. धर्म ३० , १ वाचना - निर्दोष ग्रन्थ तथा तत्प्रतिपादित अर्थ- इन दोनों के उपदेश का योग्य पात्र को प्रदान करना वाचना है ३१। गुरु शिष्य को सुत्रादि को 'बाचना' प्रदान करता है, भव्य जीव को शास्त्र पढ़ाता है, ग्रन्थ के अर्थ की प्ररूपणा करता है शिष्य उसको ग्रहण करता है। वह शिष्य भी योग्य पात्रों को वाचना दे सकता है। सामान्यतः सद्गुरु से सूत्रपाठ की शिक्षा लेकर ( न कि किसी पुस्तकादि से चुरा कर या चोरी से स्वयं पोथी बांच कर ) शास्त्रों का वाचन, आत्मकल्याण हेतु निर्दोष ग्रन्थों को स्वयं पढ़ना दूसरों को समझाने हेतु सूत्रानुयोगी व्याख्यान करना या वाचन करना ये सब कार्य वाचना के अन्तर्गत हैं । ३३ सूत्र - व्याख्यान के ६ भेद शास्त्रों में बताए गए हैं - ( १ ) संहिता ( पद का अस्खलित, शुद्ध उच्चारण), (२) पद (वाक्य के प्रत्येक पद का शुद्ध-शुद्ध पृथक्-पृथक् उच्चारण, (३) (पदार्थ पद का अर्थ), (४) पद-विग्रह, (५) (पदच्छेद ) ( चालना शंका आदि उठाना ), (६) प्रसिद्धि ( उठाई गई शंकाओं का समुचित समाधान ) ३४ सूत्रों का उच्चारण इस तरह सांगोपांग व परिपूर्ण रूप से किया जाए कि अक्षरादि की स्खलना न हो, पदों को पृथक-पृथक कर पढ़ा जाए, अपनी ओर से कोई अक्षर, पद आदि का न तो योग किया जाय और न ही कमी की जाए, वर्णों का यथास्थान ( उदात्तादिघोष - नियमानुरूप), सुस्पष्ट (न कि अव्यक्त) उच्चारण हो, प्रत्येक पद माला में गुँथे फूल जैसा सुशोभित हो । ३५ २९. ३०. ३१. ३२. ३३. ३४. ३५. Jain Education International तत्त्वा. सू. ९.२५ । (क) व्याख्या प्र. २५.७.८०९ (ख) मूलाचार - ३९३ (ग) उत्त. ३०.३४ | (क) औपपा. १९ (ख) सर्वार्थसिद्धि ९.२५ । धवला ९.४.१.५४, ५५, जै. को. ३.५.३९ । अनुयोग द्वार, १३-१४ सू. । विशेषावश्यक भाषय- ८५०-८५५1 उद्धृत, सुत्तागमे, II भाग पृ. ५८-५९ (क) अनुयोगद्वार सू. १३-१४। (ख) द्र. विशेषावश्यक भाष्य, ८५१, ८५४, ८५५1 (ग) व्या. महाभाष्य पस्पशान्हिक १.१.१ । (८५) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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