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________________ पुद्गल द्रव्य : एक पर्यवेक्षण • उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि जी म. के शिष्य श्री रमेश मुनि शास्त्री सत्य एक है, अखण्ड है और अनन्त है। पर उस एक मात्र सत्य का निरुपण करने वाले "दर्शन" अनेक हैं। इसलिये, उन सब का प्रतिपादन, भिन्न-भिन्न है, सत्य के सम्पूर्ण स्वरूप का यथार्थ रूप से संकथन करने वाला दर्शन, उसी को माना जा सकता है कि, जिस दार्शनिक ने अपने अतीन्द्रिय अनुभवों का नवनीत अपने निरूपण एवं विवेचन में भरा हो। क्योंकि अतितीव्र तपश्चर्या, गहन आत्मानुभूति जब अपने चरम-उत्कर्ष पर पहुंचती है। तब उस साधक की आत्मा, विराट विश्व के यथार्थ-स्वरूप पर पड़े आवरण को भेद कर, उसके अणु-अणु पर अपना परम दिव्य प्रकाश अर्थात् ज्ञान विखेर देती है। जिस की सर्वथा निर्मल ज्योति में उसे कण-कण की वास्तविकता दिखलाई पड़ती है। इस प्रखर ज्योति का धारक वह आत्मा. तब सर्वदर्शी. सर्वज्ञानी बन जाता है। इस दिव्य दष्टि अर्थात ज्योति के प्रकार में पदार्थ के यथार्थ स्वरूप का जो “दर्शन" होता है, “दर्शन" शब्द का वही शाब्दिक अर्थ “देखना" स्वीकार करने योग्य है। और इस देखने के बाद, द्रष्टा द्वारा पदार्थ स्वरूप का जो विवेचन किया जाता है। उससे पदार्थों का जो स्वरूप निर्धारिण होता है। वह यथार्थ पूर्ण है। दर्शन-जगत् में जैन दर्शन का शिरसि शेखरायमाण स्थान है। उस की विचार धारा अध्यात्म प्रधान है, सर्वांगपूर्ण हैं, सुव्यवस्थित है और वैज्ञानिक है, उस की चिन्तन ज्योति ऐसी अप्रतिहत है कि काल की संकीर्ण दीवारें उस की गति को अवरुद्ध नहीं कर सकती। उस ज्योतिर्मयी दिव्य दृष्टि से उद्भूत दर्शन ही वस्तु स्वरूप की यथार्थता का निदर्शक होता है। त्रिकाल अबाधित है, अनन्य है, अपराजेय है और विलक्षण है। जैन दर्शन ने “द्रव्य” के विषय में गहन चिन्तन एवं सविस्तृत-विवेचन किया है। इस सन्दर्भ में जो चिन्तन और विवेचन की अपनी अनुपम आभा है, दीप्ति है, ज्योति है, उस अक्षय एवं अलौकिक ज्योति से आत्मा भी शुभ्रज्ञान से ज्योतित हो उठता है, प्रकाशमान हो उठता है, अज्ञान का सघन-तिमिर तिरोहित हो जाता है। प्रस्तुत दर्शन ने "द्रव्य" का वर्गीकरण इस प्रकार किया है। उन के नाम निम्नलिखित क- भगवती सूत्र,श.२५, उद्दे. ५, सूत्र-७४७! ख- अनुयोगद्वार सूत्र- द्रव्यं गुण पर्यायनाम, सूत्र-१२४ ग- उत्तराध्ययन सूत्र- अध्य. २८ गा. ७! (३४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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