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नैतिकता के सन्दर्भ में कर्मसिद्धान्त की उपयोगिता
आचार्य श्री देवेन्द्र मनि
भौतिक विज्ञान के समान कर्म-विज्ञान भी कार्यकारण सिद्धान्त पर निर्भर
जिस प्रकार भौतिक विज्ञान कार्यकारण के सिद्धान्त में आस्था प्रगट करके ही आगे बढ़ता है और नये-नये आविष्कार करता है, उसी प्रकार कर्म-विज्ञान भी कार्य-कारणसिद्धान्त के आधार पर वर्तमान जीवन की घटनाओं की व्याख्या करता है। कार्यकारण भाव के परिप्रेक्ष्य में प्रोफेसर हिरियन्ना कर्मसिद्धान्त के विषय में लिखते हैं- “कर्मसिद्धान्त का आशय यही है कि भौतिक जगत् की भांति नैतिक जगत् में भी पर्याप्त कारण के बिना कोई भी कार्य (कर्म) घटित नहीं हो सकता। यह समस्त दुःख का मूल स्रोत हमारे (नैतिकताविहीन) व्यक्तित्व में ही खोज कर ईश्वर और पड़ौसी के प्रति कटुता का निवारण करता है।" भूतकालीन आचरण वर्तमान चरित्र में तथा वर्तमान चरित्र भावी चरित्र में प्रतिबिम्बित
इसका तात्पर्य यह है कि कर्मसिद्धान्त बताता है- भूतकाल के नैतिक या अनैतिक आचरणों के अनुसार ही वर्तमान चरित्र व सुख-दुख का निर्माण होता है, साथ ही वर्तमान नैतिक-अनैतिक आचरणों के आधार पर प्राणी के भावी चरित्र तथा सुख-दुःखमय जीवन का निर्माण होता है। अतीतकालीन जीवन ही वर्तमान व्यक्तित्व का निर्माता है और वर्तमान जीवन (आचरण) ही भविष्यकालीन व्यक्तित्व का विधाता है। इसका आशय यह है कि कोई भी वर्तमान शुभ या अशुभ आचरण परवर्ती शुभ या अशुभ घटना का कारण बनता है, उसी प्रकार पूर्ववर्ती किसी शुभ-अशुभ आचरण के कारण वर्तमान शुभ या अशुभ घटना घटित होती है।
अतीतकालीन शुभाशुभ आचरण के अनुसार भावी परिणामः शास्त्रीय दृष्टि में
आचारांग सूत्र में जिस प्रकार कर्मसिद्धान्त के सन्दर्भ में वर्तमान के शुभ-अशुभ आचरण के भावी परिणामों का दिग्दर्शन कराया गया है, उसी प्रकार भूतकालीन शुभ-अशुभ आचरण के अनुसार वर्तमान शुभाशुभ परिणामों का निर्देश करते हुए कहा गया है कि अतीत या भविष्य कर्मों के अनुसार होता है, यह सोच (देख कर पवित्र नैतिक आचरणयुक्त महर्षि कर्मों को धुनकर क्षय कर डाले। जैसे कि आचारांग सूत्र में पृथ्वी कायिक आदि जीवों की अमर्यादित हिंसा ( समारम्भ) के परिणामों का निर्देश किया गया है कि "ऐसा करना उसके अहित के लिए है, अबोधि का कारण है,” “यह निश्चय ही ग्रन्थ (कर्मों की गांठ) है, यह मोह है, यह अवश्य ही मृत्यु रूप है, यही नरक का निर्माण है। " संग्रहवृत्ति के अनैतिक पूर्वकृत कर्म और उसके परिणाम का उल्लेख करते हुए कहा गया है- “ इस संसार में कई संग्रहवृत्ति मानव बचे हुए या अन्य द्रव्यों का अनापसनाप संग्रह करते हैं तथा कई असंयमी पुरुषों के उपभोग के लिए संचय करते हैं, परन्तु वे उपभोग काल के समय यदाकदा रोगों से ग्रस्त हो पड़ते हैं।" जाति कुल गोत्र आदि के मद (अभिमान) के भावी परिणामों का निर्देश करते हुए कहा गया है- "अंधा होना, बहरा होना, गूंगा होना, काना होना, टूटा होना, कुबड़ा होना, बौना होना, कालाकलूटा होना और कोढ़ी होना, ये सब जाति आदि
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