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________________ १२. सरुताबाई - सं. १९०० के लगभग - ये स्थानकवासी परम्परा के पूज्य श्रीमलजी महाराज से संबंधित है। नाहटा जी ने ऐतिहासिक काव्य संग्रह में पृ. १५६-१५८ पर इनकी एक रचना पूज्य श्री मलजी की सज्झाय प्रकाशित की है। १३. जड़ाव जी - ये स्थानकवासी परम्परा के आचार्य श्री रतनचन्द्र जी महाराज के सम्प्रदाय की प्रमुख रंभा जी की शिष्या थी। इनका जन्म संवत् १८९८ में सेठां की रिया में हुआ था। संवत् १९२२ में ये दीक्षित हुई। नेत्र ज्यति क्षीण होने से संवत् १९७२ तक ये जयपुर में ही स्थिरवासी बन कर रहीं। इनकी रचनाओं का एक संकलन जैन स्तवनावली नाम से प्रकाशित हुआ है। इसमें इनकी स्तवनात्मक, कथात्मक, उपदेशात्मक और तात्विक रचनाएँ संग्रहित हैं। रुपक लिखने में उन्हें विशेष सफलता मिली है। एक उदाहरण देखिए - ज्ञान का घोड़ा चित की चाबुक, विनय लगाम लगाई। तप तरवार भाव का भाला, रिवम्मा ढाल बंधाई। सत संजम, का दिया मोरचा, किरिया तोप चढ़ाई। सझाय पंच का दारू सीसा, तोपा दीवी चलाई। राम नाम का रथ सिणगारया दान दया की फौजा। हरख भाव से हाथी हौदे, बैठा पावों मौजा। साच सिपाही पायक पाला, संवर का रखवाला। धर्म राय का हुक्म हुआ जब फौजा आगी चाला। १४. आर्या पार्वताजी - इनका सम्बन्ध स्थानकवासी परम्परा के पूज्य श्री अमरसिंह जी महाराज की सम्प्रदाय से है। इनका जन्म आगरे के निकट खेड़ा भांड पुरी गाँव में चौहान राजपूत बलदेव सिंह की पत्नी धनवती की कुक्षि से संवत् १९११ में हुआ। जैन मुनि कंवर सेन जी के प्रतिबोध से संवत् १९२४ से इन्होंने साध्वी हीरादेवी के पास दीक्षा ग्रहण की। बाद में ये सती खम्बा जी की शिष्या तप-स्विनी मेलो जी की शिष्या बन गई। पंजाब की साध्वी परम्परा में इनका गौरव पूर्ण स्थान रहा है। इनके द्वारा रचित्र निम्नलिखित चार रचनाओं का उल्लेख है। (१) वृत मण्डली (संवत् १९४०) (२) अजित सेन कुमार ढाल (संवत् १९४०) (३) सुमति चरित्र (संवत् १९६१) (४) अरिदमन चौपाई (संवत् १९६१) इनकी हस्तलिखित प्रतियाँ बीकानेर में श्री पूज्य जिन चारित्र सूरि जी के संग्रह में है। इनकी कई गद्य कृतियाँ भी प्रकाशित हैं। १५. भूर सुन्दरी - इनका सम्बन्ध भी स्थानकवासी परम्परा से है। इनका जन्म संवत् १९१४ में नागर के समीप वुसेरी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम अखयचन्द जी रांका तथा माता का नाम रामाबाई था। अपनी भुआ से प्रेरणा पाकर ११ वर्ष की वय में साध्वी चंपा जी से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की। ये कवयित्रि होने के साथ-साथ गद्य लेखिका भी थी। इनके निम्न लिखित ६ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। (१) भूर सुन्दरी जैन भजनों द्धार (संवत् १९८०), (२) भूरसुन्दरी विवेक विलास (संवत् १९८४), (३) भूर सुन्दरी बोध विनोद (सं. १९८४), (४) भूर सुन्दरी अध्यात्म बोध (सं. १९८५), (५) भूर सुन्दरी ज्ञान प्रकाश (सं. १९८६) (६) भूर सुन्दरी विद्याविलास (सं. १९८६) (५५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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