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________________ 6 2363693comdisc00000000100618066644064456986888888888886000000000000ddes968800000000000000868840 sck जैन आगम साहित्य में नारी का स्वरूप 302268826880032002020163003552800 • महासती श्री उदितप्रभा 'उषा' 1036d6 :25888888888888888652800000000038 महर्षि रमण का कहना है "पति के लिए चरित्र, संतान के लिये ममता, समाज के लिये शील, विश्व के लिये दया, तथा जीव मात्र के लिये करुणा संजोने वाली महाप्रकृति का नाम ही नारी है।" वह तप, त्याग, प्रेम और करूणा की प्रतिमूर्ति है। उसकी तुलना एक ऐसी सलिला से की जा सकती हैं, जो अनेक विषम मार्गों पर विजयश्री प्राप्त करते हुए, सुदूर प्रान्तों में प्रवाहित होते हुए । आत्माओं का कल्याण करती है। उसमें पथ्वी के समान सहनशीलता. आकाश के समान चिन्तन की गहराई और सागर के समान कल्मष को आत्मसात कर पावन करने की क्षमता विद्यमान है। नारी की तुलना भूले भटके प्राणियों का पथ प्रदर्शित करने वाले प्रकाश स्तम्भ से की जा सकती हैं। उसके जीवन में राहों की धूल भी है, वैराग्य का चन्दन भी है और राग का गुलाल भी है। वह कभी दुर्गा बनकर क्रान्ति की अग्नि प्रज्ज्वलित करती है तो कभी लक्ष्मी बनकर करूणा की बरसात। न+अरि अर्थात् जो किसी की शत्रु नहीं उसके वात्सल्यमय आंचल में शिशु के समान अखिल विश्व पल्लवित होता है। अतः यदि उसे जगन्माता की संज्ञा से अभिहित किया जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ___हमारे देश में प्राचीन काल से ही नारी का स्थान गरिमामय रहा है। "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जहां पर नारियों की पूजा और सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते है। इयं वेदिः भुवनस्य नाभिः नारी ही संसार का केन्द्र है। इन सूत्रों में नारी के प्रति अपार आस्था, श्रद्धा और पूज्य भावना अभिव्यक्त की गई है। ___ कवियों ने उनकी तुलना वर्ण एवं गन्ध के फूलों की महकती मनोहारिणी माला से की हैं, जननी के रूप में वह सर्वाधिक पूज्य एवं सम्माननीय है, बहन के. रूप में वह स्नेह, सौजन्य एवं प्रेरणा की प्रवाहिनी है, पत्नी भार्या, सहधर्मिणी के रूप में वह मानव के समग्र व्यक्तित्व का मित्र रूप में विकास करती है। वह एक ऐसे असीम सागर के समान है, जिसमें चिन्तन के असंख्य मोती विद्यमान है। जैन मनीषियों ने उसके महत्व के आलोक को समझा और शब्दबद्ध किया। आगम के ज्योतिर्मय पृष्ठों में उसके आदर्शों एवं.गौरवगाथाओं के अनेक चित्र विद्यमान है। जैन धर्म में नारी को बाह्य परिवेश के स्थान पर उसके आन्तरिक सौन्दर्य के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकित किया गया है। उसकी उग्र तपस्या, असीम त्याग अतुलनीय साहस, सेवा परायणता, शील सौन्दर्य, संवेदनशीलता, तितिक्षावृति के दिव्य प्रभाव का गान किया गया है। उसने अन्तर में विद्यमान अतुल जीवन शक्ति को अनुभव कर सम्मानित किया है। जैन इतिहास में नारी माहात्म्य विषय में सर्वोत्कृष्ट पक्ष पुरुष से पहले जीवन के विकास की चरम स्थिति में पहुंचना है। उदाहरणार्थ: भगवान् ऋषभदेव के समक्ष जब माता मरूदेवी आती है, और हाथी पर (३९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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