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________________ हैं। अणुबम, परमाणुबम, हाइड्रोजनबम आदि-आदि अनेक प्रकार के बम वे बना चुके हैं, और उनसे भी अधिक भयंकर शस्त्रों के आविष्कार कर रहे हैं। आप लोगों को पुरुषों की इस हिंसक व विद्वेषपूर्ण वृत्ति को स्नेहजल से प्लावित करना है। तात्पर्य यही है कि पुरुषों की बराबरी करके और उनके समान अधिकार पा करके भी आप लोगों को सन्तुष्ट नहीं होना है। आपको पुरुष जाति पर अपना प्रभाव डालना है, उनकी स्वच्छन्द मनोवृत्ति को संयत बनाना है और इस तरह विश्व शान्ति की स्थापना में योग देना है। आपका सबसे महान् कर्त्तव्य अपने नन्हें बालकों पर सुसंस्कार डालने का है। उनका हृदय बड़ा कोमल होता है। कम्हार मिट्टी के कच्चे घड़े को चाहे जैसी आकति दे सकता है। कच्चे बाँस को चाहे जैसे मोडा जा सकता है। उसी तरह बच्चों की बद्धि बड़ी सरल तथा अनकरणशील होती है, अतः माता चाहे तो अपने पुत्र को महान्, सदाचारी, वीर तथा प्रतापी बना सकती है। शिवाजी को वीर उनकी माता जीजाबाई ने बनाया था। माता के ही संस्कारों के कारण आगे जाकर शिवाजी ने औरंगजेब के छक्के छडा दिये थे। गाँधीजी को भी उनकी माता ने ही जगत पज्य बनाया था। विलायत जाने से पहले वे गाँधीजी को एक जैन सन्त के पास ले गई। और उन्हें मांसाहार, परस्त्री-गमन तथा शराब पीने का त्याग करवा दिया। शंकराचार्य को ज्ञान की चोटी पर उनकी माता ने ही पहुँचाया था। __ आप चाहें तो अपने घर को स्वर्ग बना सकती हैं और आप चाहें तो नरक। अपने त्याग, प्रेम व के माधर्य से घर को नन्दन कानन बनाइये। आपका व्यक्तित्व इतना सन्दर होना चाहिये कि प्रत्येक बात आपके पति सुदामाजी की तरह मानें। आप में अपूर्व शक्ति भरी हुई है सिर्फ उसे पहचानने की आवश्यकता है। कुछ लोगों की विचारधारा होती है कि स्त्रियों का कार्य तो घर में चूल्हा-चक्की तक ही सीमित होना चाहिये, अधिक पढ़ाने से क्या लाभ? आप लोग इस भुलावे में कदापि न आएँ। अपनी कन्याओं को बराबर शिक्षित बनायें पर साथ ही उनमें उच्च संस्कार डालने का प्रयत्न करें, पढ़ने-लिखने का तात्पर्य अधिकाधिक फैशनेबिल बनना, अपने माता-पिता की अवज्ञा करना नहीं है। पढ़ने का असली उद्देश्य अपने गृह का सुप्रबन्ध करना तथा आपत्ति-विपत्ति के समय पति की सहायता करना भी है। गलत रास्ते पर जाते हुए पति को चतुराई से मोड़ना भी शिक्षा का ही अंग है। प्रसिद्ध विद्वान् लेखक प्रेमचन्दजी ने भी कहा है “पुरुष शस्त्र से काम लेता है तथा स्त्री कौशल से। स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान होती है।" विक्टर ह्यगो ने तो यहाँ तक कहा है - “Mun huve sight, woman insight." अर्थात् मनुष्य को दृष्टि प्राप्त होती है तो नारी को दिव्य दृष्टि। बहनो ! आपको अपनी दिव्य दृष्टि खोनी नहीं है वरन् और प्रखर बनानी है। प्राचीन काल से आपकी जिस महिमा को देव भी गाते रहे हैं, उसे कायम रखना है। नारी सदा से महिमामयी रही है, इसे साबित करना है। तभी हमारे राष्ट्र का कल्याण होगा। (३२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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