________________
वह पति के चले जाने पर रो-रोकर अश्रुधारा प्रवाहित नहीं करती थी वरन् पूर्ण विश्वासपूर्वक अपनी सखी से कहती थी -
सखी अमीणा कंथ री, पूरी यह परतीत।
कै जासी सूर धंगड़े, के आसी रण जीत॥ _हे सखी! मुझे अपने प्रियतम पर पूरा विश्वास है कि या तो वह युद्ध में जीतकर वापिस आएंगे अथवा लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त करेंगे। इतना कहकर भी उसे संतोष नहीं होता और अत्यन्त प्रेम-विह्वल होती हुई पति की प्रशंसा करती -
हूं हेली अचरज करूं, घर में बाय समाय।
हाको सुणतां हूलसे, रण में कोच न माय॥ हे सखी! मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि मेरे प्रिय घर में तो मेरी बाहुओं में ही समा जाते हैं किन्तु युद्ध के नगाड़े सुनकर हुलास के मारे कवच में भी नहीं समाते।
अपने पति के प्रति राजपूत नारियों में कितना गर्व होता था। असीम प्रेम होता था, लेकिन पति के युद्ध से मुँह मोड़कर आने की अपेक्षा वे विधवा हो जाना पसन्द करती थीं। युद्ध में वीर गति पाने पर उनके गर्व एवं उत्साह का पारावार नहीं रहता था और अपने मृत पति को लेकर वे हँसते हँसते वापिस उनके शीघ्रतम मिलने के लिये चिता पर चढ़ जाया करती थीं। उस समय भी वे अपनी सखियों को कहना नहीं भूलती थीं -
साथण ढोल सुहावणो, देणो मो सह दाह।
उरसां खेती बीज धर, रजवट उलटी राह॥ अर्थात् हे सखी! जब अपने प्रिय के साथ मैं चिता पर चढूँ उस समय तुम बहुत ही मधुर ढोल बजाना। राजपूतों की तो यही उलटी रीति है कि उनकी खेती पृथ्वी पर होती है किन्तु फल आकाश में प्राप्त होता है। इन उदाहरणों से यह साबित हो जाता है कि नारी ने ऐसे नाजुक समय में भी, जबकि उन्हें
अत्यन्त तुच्छ माना जाने लगा था, अपनी महिमा को कम नहीं होने दिया, बल्कि और गौरवान्वित ही किया. राजपूत नारियों के जीवित त्याग के ऐसे उदाहरण विश्व में और कहीं भी नहीं मिल सकते। यह ठीक है कि उस समय की सतीत्व की कल्पना विवेकपूर्ण न हो और सतीत्व की कसौटी आत्मदाह है भी नहीं, तथापि इससे नारी के उत्सर्ग स्वभाव में कोई कमी नहीं आती।
___अब इस नवीन युग में स्त्रियों ने अपना उचित स्थान पुनः प्राप्त कर लिया है। वे सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक सभी क्षेत्रों में बड़ी सफलता के साथ काम कर रही है। श्रीमती इन्दिरा गाँधी भारत की प्रधानमंत्री थी। भारतकोलिका सरोजिनी नायडू गवर्नर थीं। विजयलक्ष्मी पण्डित अमेरिका में राजदूत आदि के रूप में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर कार्य करती रही है। सुचेता कृपलानी उत्तरप्रदेश के शासन की सूत्रधार
__ बहनों को भी ऐसे आदर्श अपने सामने रखने चाहिये। इनसे प्रेरणा लेनी चाहिये। पुरुषों की हिंसक वृत्ति तो चरम सीमा तक पहुँच चुकी है। उन्होंने दो विश्वयुद्ध कर लिये, अब तीसरे युद्ध की भी आशंका
(३१)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org