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________________ पावन प्रेरणा स्रोत • आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि, पीपाड़ सिटी आज (६.८.९१) टेलीग्राम प्राप्त हुआ। जिसमें स्थ विरा परम विदुषी महासती श्री कान कुंवर जी के समाचार पढ़कर अत्यधिक विचार हुआ। महासती जी पुरानी परम्परा का प्रतिनिधित्व करने वाली साध्वी रत्ल थी। जिन्होंने सुदीर्घ काल तक संयम साधनाकर अपने जीवन को धन्य बनाया। जिनका पवित्र चरित्र जन-जन के लिए पावन प्रेरणा स्रोत रहा। जो मारवाड़ से विहार कर मद्रास जैसे सुदूर प्रांत में पधारी। जहां भी पधारी धर्म की अपूर्व प्रभावना की। आज उनका भौतिक देह हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका यशः शरीर आज भी जीवित है और भविष्य में भी सदा जीवित रहेगा। उन्होंने अपने जीवन काल में शासन की जो सेवा की है, वह कभी भुलाई नहीं जा सकती। यहां पर स्मृति सभा में महासती श्री कान कुंवरजी म.सा. के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला गया और चार लोगस्स का ध्यान कर महासती जी के प्रति श्रद्धा-सुमन समर्पित किये गये। - महासती श्री बसंतकुंवर जी, महासती श्री कंचनकुंवर जी महासती श्री चेतनप्रभाजी, महासती श्री चन्द्रप्रभाजी, महासती श्री सुमन जी आदि आप सभी सती मंडल को बड़े महासती जी के स्वर्गवास से खेद होना स्वाभाविक है, क्योंकि वे छत्र स्वरूपा थी। आप सभी की संयम साधना और आध्यात्मिक प्रगति कराने में उनका अपूर्व योगदान आप सभी को मिला है। इसलिये सद्गुरुणी जी के वियोग से मन खिन्न होना स्वाभाविक है, पर आप सभी ज्ञानी हैं। अत: चिंता नही चिंतन करें और अतिजात शिष्या बनकर सद्गुरुणी जी के नाम को अधिक से अधिक रोशन करें, यही हमारा संदेश हैं। ऐसी विषम परिस्थिति में अपने आपको अकेला न समझे, आप हमारे है, जो कोई भी कार्य हो बिना संकोच सूचित करें। निधूम-ज्योति आचार्य श्री देवेन्द्र मुनि स्वभाव में सरलता, व्यवहार में नम्रता, वाणी में मधुरता, मुख पर सौम्यता, नयनों में तेजस्विता, हृदय में पवित्रता जिनके जीवन में जगमगा रही हो, वह जीवन जन-जन के आस्था का केन्द्र होता हैं। मानव का उन्नत और समुत्रत मस्तिष्क उनके चरणों में सहज नत हो जाता है। महासती चम्पाकुंवर जी का जीवन ऐसा ही जीवन था। चम्पा के फूल की तरह ही उनका जीवन सद्गुणों की सौरभ से महक रहा था। उनका स्वभाव बहुत ही सरल था। छल प्रपंज और माया का अभाव था वे जैसी बाहर थी वैसी अन्दर थी। दूसरी विशेषता यह थी कि उनकी वाणी में सहज मधुरता थी। जो जन-मन को चुम्बक की (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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