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________________ जैन धर्म दिवाकर, राष्ट्रसंत आचार्य सम्राट पू. श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. का संदेश भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण, गरिमामय स्थान दिया गया है। नारी को नर की खान बताकर उसे गौरवान्वित एवं सम्मानित किया था। भगवान महावीर ने चतुर्विध संघ में उसे स्थान देकर साधना का समान अधिकार प्रदान किया था। नारियों ने समय- समय पर पुरुषों को उबारा हैं । राजुल ने स्थनेमि जैसे महारथी को पथ भ्रष्ट होने से बचाया था। याकिनी महत्तरा ने हरिभद्र के घमण्ड - दर्प में आये हुए ज्ञान के मद को उतारा था। ऐसे अनेकानेक उदाहरण उपलब्ध हैं। आज भी नारी धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में आगे ही है। उन्हीं साध्वी परम्परा की श्रृंखला में महासती जी श्री कान कुवंर जी म. एवं श्री चम्पा कुंवर जी म. भी हैं। राजस्थान की पुण्य भूमि में जन्में एवं आंध्र, कर्णाटक, तामिलनाडु, मध्यप्रदेश आदि विविध प्रांतों को स्पर्शते हुए आगे बढ़ते रहे। दोनों साध्वियों में परस्पर प्रेम, स्नेह, वात्सल्य था। सरल, नम्र एवं भद्रिक परिणामी थी। उनकी वाणी में माधुर्य था। व्यवहार में कौशल्य था तथा सभी को साथ लेकर चलने की भावना थी । उनका अध्ययन गहरा था। दोनों सतियों का पांच मास के अंतराल में स्वर्गवास होना उनके आपसी स्नेह का द्योतक है। सती - द्वय की पुण्य स्मृति में ग्रंथ प्रकाशित होने जा रहा है, यह संतोष का विषय है। इस ग्रंथ के माध्यम से जनता उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से पूर्ण रूपेण परिचित होकर उनके आदर्श जीवन से प्रेरणा प्राप्त कर अपने जीवन को समुज्ज्वल बनाने का प्रयत्न करेगी ऐसी हार्दिक अन्तराभिलाषा है । Jain Education International (१) अहमदनगर । दि. १०-१०-१९९१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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