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प्राचीनक काल में, जिसे हम वैदिक काल भी कहते हैं, नारियों का स्थान बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथा आदरयुक्त था। गार्गी, मैत्रेयी तथा लोपामुद्रा जैसी अनेक विदुषी नारियाँ हुई हैं जिन्होंने वेदों की ऋचाएँ भी लिखी हैं। हमारे जैन शास्त्रों में भी अनेक विदुषी सतियों के नाम व कथानक प्राप्त होते हैं। महसती सीता, चन्दनबाला, ब्राह्मी तथा सुन्दरी आदि सोलह सतियाँ तो हुई ही हैं, जिनके नाम को तथा गुणों को हम आज भी प्रतिदिन प्रभात में याद करते हैं।
मैत्रेयी संसार को घृणा की दृष्टि से देखती थी। जब याज्ञवल्क्य अपनी विदुषी सहधर्मिणी मैत्रेयी को सब कुछ देकर वन जाने को प्रस्तुत हुए तब पतिपरायणा मैत्रेयी बोली-अगर ऐश्वर्य से भरी हुई पृथ्वी भी मुझे मिल जाएगी तो क्या मैं अमर हो जाऊँगी? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया- धन से तुम अमर नहीं हो सकोगी पर सुखी हो जाओगी। मैत्रेयी ने कह दिया -जिससे मैं अमर नहीं हो सकूँगी उसे लेकर क्या करूँगी?
कितनी गम्भीर दार्शनिकता से उसने जीवन की ओर तथा वैभव की ओर दृष्टिपात किया था?
छाया के समान राम का अनुसरण करने वाली सीता ने बिना राम की सहायता के ही कर्त्तव्य निर्दिष्ट कर लिया था। वन गमन के सारे क्लेशों को सहने के लिये स्वयं तैयार हो गई थी। किन्तु अकारण ही पति द्वारा निर्वासित की जाने पर भी उसने अपने धैर्य को नहीं छोड़ा। उसका सारा जीवन ही साकार साहस है, जिस पर दैन्य की छाया कभी नहीं पड़ी।
नारी साक्षात प्रेरणा है। वैष्णव रामायण के अनुसार उर्मिला-जिसने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते हुए अपने प्रियतम लक्ष्मण को नहीं रोका तथा चौदह वर्षों तक कठिन वियोग सहन किया। उर्मिला का यह त्याग तथा उसकी सहिष्णुता आज संसार में अमर है।
बुद्ध के द्वारा परित्यक्ता यशोधरा ने अपूर्व साहस द्वारा कर्तव्य पथ खोजा। अपने पुत्र को परिवर्धित किया और अन्त में सिद्धार्थ के प्रबद्ध होकर लौटने पर कर्तव्य की गरिमा से गरु बनकर उ दीन, हीन बनकर अथवा प्रणय की याचिका बनकर नहीं। सती चन्दनबाला ने अनेक परीषह सहे। उसकी आत्म-शक्ति व तेज के प्रताप से लोहे की हथकड़ियाँ भी टूटकर बिखर गईं और वह देव-पूज्य बन गई। महापतिव्रता सती सुभद्रा का नाम भी आज इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित है।
प्राचीन काल में नारियाँ समाज में हीन नहीं समझी जाती थीं। पुरुषों के समान ही उन्हें सुविधाएँ मिलती थीं। उन्हें सच्चे रूप में अर्धागिनी माना जाता था।
___ उस समय के भारत में जितने आदर्श स्वरूप देवी-देवताओं की मान्यता थी, उनमें स्त्री रूप का महत्त्व अधिक था। विद्या की देवी सरस्वती, धन की देवी लक्ष्मी, सौन्दर्य की रति तथा पवित्रता की प्रतीक गंगा थी। शक्ति के लिये महाकाली दुर्गा तथा पार्वती देवी की भी उपासना की जाती थी। वर्तमान में भी विद्या के लिये सरस्वती की, सम्पत्ति की कामना होने पर लक्ष्मी की तथा शक्ति के लिये काली की उपासना की जाती है। यहाँ तक कि पशुओं में भी बैल की नहीं, गाय की पूजा होती है। महापुरुषों के नामों में प्रथम स्त्रियों के ही नाम मिलते हैं यथा सीता-राम, राधा-कृष्ण, गौरी-शंकर। इस सबसे यही प्रतीत होता है कि महिमामयी नारी मनुष्य के जीवन का चहुँमुखी कवच है, जिसके कारण कठिनाइयाँ, दुःख, परेशानियाँ पुरुष तक नहीं पहुँच पातीं, जब तक कि वह विद्यमान है।
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