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________________ यथार्थ स्वरूप है। साध्वियों ने उत्कृष्ट रूप से संयम साधना के अमृत से भव्य चातकों के असंयम ताप को दूर किया, संसार रूपी सागर के भंवरों में गोते खाने वाले भव्य जीवों को व्रतों का हस्तावलम्बन देकर बाहर निकाला। भव्यआत्माओं के अज्ञानान्धकार से परिव्याप्त चक्षुओं को ज्ञान-शलाका से खोला। वास्तविकता यह है कि सत्य शील की अमर साधिकाओं की उज्ज्वल-परम्परा का प्रवहमान प्रवाह वस्तुतः विलक्षण प्रवाह है। उनकी आध्यात्मिक जगत् में गरिमामयी भूमिका रही है। वह उद्दण्डता को प्रबाधित करती है। कठोरता को सात्विक अनुराग के द्रव में घोल कर समाप्त कर देती है। पाशविकता पर वल्गा लगाती है। यथार्थ में उज्ज्वल तारिका साध्वीरत्नों ने जहाँ निजी जीवन में अध्यात्म का आलोक फैला कर पारलौकिक जीवन के सुधार की महती और व्यापक भूमिका का कुशलता एवं समर्थता के साथ निर्वाह किया है। वहाँ धर्म प्रचार के गौरवपूर्ण अभियान में भी एक अद्भुत उदाहरण उपस्थित करने में सक्षम रही है। अतएव वे नारी के गौरवमय अतीत को अभिव्यक्त करती है। जिन साध्वीरत्नों ने सत्य और शील की विशिष्ट साधना की वे सचमुच में अजर-अमर हो गई। उन का जीवन ज्योतिर्मय एवं परमकृतार्थ हुआ और उन के समुज्ज्वल जीवन की सप्राण प्रेरणाओं से समूची मानवता कृतार्थ होती रही है। जैन साहित्य का गहराई से परिशीलन करने पर विदित होगा कि अनेक साध्वियों का ज्योतिर्मय जीवन सविस्तृत रूपेण प्राप्त होता है। मैं यहाँ पर केवल उनके नामों का निर्देश कर रहा हूँ, जिससे साध्वियों की एक प्रलम्ब स्वर्णिम श्रृंखला का परिबोध हो सकेगा। भगवती ब्राहनी- साध्वीरत्न ब्राह्मी प्रवर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषम देव की ज्येष्ट पुत्री और चक्रवर्ती भरत की बहन थी। इन का जीवन विलक्षण विशेषताओं का अक्षय कोष था। इन्होंने मोक्ष पद को प्राप्त कर अपना जीवन सार्थक किया, सफल किया। वैराग्य मूर्ति सुन्दरी-श्रमणी श्रेष्ठा सुन्दरी भी भगवान् ऋषमदेव की ही कन्यारत्न थीं, जिन के पावन नाम का श्रवण मात्र से भव्य जीवों का कल्याण हो जाता है। ब्राह्मी और सुन्दरी सौतेली बहनें थीं। और ये दोनों अविवाहित थीं। साध्वीरत्न सुन्दरी भगवती ब्राह्मी के साथ विचरण शील रहीं। जन-मानस को प्रभावित करने में स्वयं के त्याग-वैराग्य और साधनामय जीवन का दृष्टान्त एक अतीव समर्थ साधन रहा। अन्ततः महासती सुन्दरी ने समग्र कर्मों का समूलतः नाश कर निर्वाण पद की प्राप्ति की। महासती दमयन्ती-साध्वीरत्न दमयन्ती वस्तुतः धैर्यमूर्ति थी। विशिष्ट साध्वियों की अग्रपंक्ति में साध्वी श्री दमयन्ती का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। वे सप्राण-प्रेरणा स्रोत हैं। इन्होंने सुदीर्घकालीन पति वियोग जन्य पीड़ा को जिस धैर्य के साथ सहन किया, वह नारी संस्कृति का एक श्रेष्ठ तम आदर्श है। राजा नल और रानी दमयन्ती ने दृढ़ता के साथ आत्म कल्याण के मार्ग पर कदम बढ़ाया। वास्तव में साध्वी शिरोमणि दमयन्ती का जीवन एक ज्योतिर्मय जीवन था। महासती कौशल्या-श्रमणी'. काशल्या एक आदर्श जननी थी। माता कौशल्या का आदर्श जननी के रूप में उज्ज्वल.. अमर रहेगा। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के शील और औदार्य का वर्णन करना लेखनी से परे है। आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श स्वामी आदि गुणों की व्याख्या के लिये श्री रामचन्द्र का ७ - सुभाषित रत्न सन्दोह ६-११ आचार्य अमित गति! ८ - क - हरिवंश पुराण सर्ग -ए पृष्ठ १८३! ख - आदि पुराण भाग १ पर्व २४! ९ - क - भरतेश्वर बाहुबली वृत्ति गाथा है! (२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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