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२२ वर्ष की अवस्था में संसार के वैभव तथा सुखों को तिलांजलि दे ? किन्तु इन्होंने संसार की असारता को समझ कर संयम के मार्ग को अपनाया प्रभ भक्ति में लीन मीरा की तरह संसार के इन बन्धनों को कच्चे धागे की तरह झटके से तोड़कर मुक्ति के महापथ पर निकल पड़ी। प्रभावी गुरु एवं गुरुणीजी का सहज ही सांनिध्य प्राप्त हो गया। उन्ही के निर्देशन में आपकी निरन्तर साधना चलती रही। जिससे आप भी एक प्रभावी साधक के रूप में विख्यात हो पायी। यही वजह रही कि आपका अध्ययन सुचारु रूप से चल सका अनेक भाषाओं का ज्ञान हो सका। तथा आपकी व्याख्यान शैली प्रभावी बन सकी।
राजस्थान में जन्म लेकर आपने अपना कार्य क्षेत्र सीमित नहीं रखा बल्कि सुदूर क्षेत्रों में जाकर आपने अपने ज्ञान को निरन्तर प्रवाहित किया। आपने दर्शन एवं पीयूष वाणी से श्रोताओं को मंत्र मुग्ध किया। जिसको सुनकर श्रोता आपकी भरि-भरि प्रशंसा किये बिना नहीं रहते थे।
आपकी प्रवचन शैली, सरल, सरस, स्पष्ट, प्रभावोत्पादक सारगर्भित तथा मार्मिथी। जनमानस की कलुषता को दूर कर शान्ति और आनन्द प्रदान करती थी। सतत अध्ययनशीलता आपके जीवन का क्रमश "स्वाध्याय परमतप" को चरितार्थ करने में आप सफल रही है। एक साधिका का परम लक्ष्य भी यही है कि निरन्तर स्वाध्याय करते रहो तभी तो भगवान महावीर ने फरमाया कि आहार भले ही त्याग दिया जाए किन्तु स्वाध्याय को कभी भी न छोड़ा जाए इस परम् उद्देश्य को आपने अपने जीवन में आत्मसात किया था। जो कि सभी के लिये प्रेरणादायी रहेगा।
सेवा भावना में भी आप पीछे न ही रही है “सेवाधर्मों परम् गहनो" आप श्री के जीवन का सहज ही लक्ष्य था अपनी श्रद्धया गरुणी जी की ही नहीं अपित् सब के प्रति आपका तन मन समपित १
। क्योंकि सेवा निष्ठा अपने और पराये का भेद नहीं रखती है। जिसे आपने-अपने जीवन में अपना रखा था।
आप समासज की विषमता से पूर्ण परिचित थी। समाज कितना पतन की ओर जा रहा है इस समाज के उत्कर्ष के लिये आप सदैव प्रयत्न शील रही। आपका निरन्तर यही प्रयास रहा कि समाज में जो भी कुरीतियाँ कुरुढ़ियाँ व्याप्त है शीघ्र ही समाप्त हो। ताकि समाज में पूर्व अध्यात्मवाद का प्रसार हो। नैतिकता का विकास हो। आपका यह सतत प्रयास प्रेरणास्पद रहेगा वास्तव में ऐसी ही महान साधिका समाज में परिवर्तन ला सकती है। कार्य करने की क्षमता आप में अद्भुत थी। अथक परिश्रम से आप अपनी योजना को साकार रूप देती रही थी।
__ आपमें तप, त्याग पुष्प में सुगन्ध, मिश्री में ठास, दुग्ध में नवनीत की तरह समाया हुआ था। आपका जीवन अनेक सद्कृतियों से ओत प्रोत था। आप के तेजस्वी व्यक्तित्व से सभी प्रभावित हो जाया करते थे। आपके व्यक्तित्व का कहाँ तक वर्णन किया जाए? आप की स्मृति चिर स्थायी है जो कि जन मानस के पटल पर उभरती रहेगी युगो-युगों तक अपकी यशो गाथा चलती रहेगी जोकि जैन इतिहास में स्थायी स्थान बनायेगी।
है समय नदी की धार, कि जिसमें सब बह जाया करते है, है समय बड़ा तूफान, प्रबल पर्वत हिल जाया करते है।
अक्सर दुनिया के लोग, समय में चक्कर खाया करते है लेकिन कुछ ऐसे होते जो इतिहास बनाया करते है ॥
सी. ४६ डॉ. राधा कृष्णन् नगर
भोलवाड़ा ३११००१
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