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________________ सिंधनूर वर्षावास :- विभिन्न ग्राम नगरों में धर्म प्रचार करते हुए यथासमय वर्षावास हेतु सिंधनूर में प्रवेश किया। आपके पदार्पण से सिंधनर का जनमानस हर्षोउल्लास से भर गया। बहनें मंगत स्वागतार्थ, अगवानी हेतु आई। सभी भाई बहन जय जयकार के निनादों से सिंधनूर के गगन मंडल को गुंजाते हुए अगवानी हेतु उपस्थित. हुए और बड़े ही ठाट बाट के साथ वर्षावास हेतु सिंधनूर में आपका प्रवेश करवाया। इस अवसर पर आसपास तथा दूरस्थ स्थानों से भी काफी श्रीसंघ उपस्थित हुए थे। __ प्रवचन के माध्यम से ज्ञान की गंगा प्रवाहित होने लगी। बालक, वृद्ध, युवा सभी वय के नर नारी पू.गुरुवर्या के प्रवचन श्रवण कर प्रसन्नता का अनुभव करते। धार्मिक शिक्षण, संगीत प्रतियोगिता, नाटक आदि विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का सिलसिला सम्पूर्ण वर्षावास काल में चलता रहा। वर्षावास की अवधि में विभिन्न ग्राम नगरों के श्रीसंघों का आवागमन भी नियमित रूप से होता रहा। मद्रास से तो कोई न कोई नियमित रूप से सम्पूर्ण वर्षावास काल में आता ही रहा। श्रीसंघ मद्रास की ओर से इस अवधि में आगामी वर्षावास हेत आग्रह भरी विनती बराबर होती रही। वर्षावास का एक भी दिन ऐसा नहीं बीता कि जिस दिन बाहर से कहीं का श्रीसंघ न आया हो । स्थानक में प्रतिदिन भीड़ लगी रहती थी। मद्रास श्रीसंघ की वर्षावास करवाने की भावना के प्रबलता को देखते हुए पू.गुरुवर्या ने आगामी वर्षावास अर्थात वि.सं. २०४४ के वर्षावास हेतु स्वीकृति प्रदान कर दी। वर्षावास की स्वीकृति मिलते ही श्रीसंघ मद्रास ने जय जयकारों से गगन मंडल गुंजा दिया। उनकी प्रसन्नता असीम हो गई। वर्षों की उनकी भावना की पूर्ति हो गई। अनेक प्रकार के धार्मिक आयोजनों के साथ वि.सं. २०४३ का सिंधनूर का वर्षावास आनंदपूर्वक समाप्त हुआ। श्रीसंघ सिंधनूर ने अश्रुपूरित नेत्रों से आपको भावभीनी बिदाई दी। सिंधनूर से विहार कर आपश्री गंगावती पधारी। गंगावती में पू.स्व. युवाचार्यश्री की पुण्य तिथि तप-त्याग से साथ मनाई गई ।इस अवसर पर वर्षावास जैसा ठाट लग गया। पच्चीस घरों की बस्ती में ९० आयम्बिल, २४ उपवास, १३ उपवास, ९-८ आदि के साथ लगभग २५ तेले की तपश्चर्या स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में हुई। ___ पू.गुरुवर्याश्री ने एवं मूर्ति पूजक साध्वीजी ने पू.युवाचार्यश्री के जीवन पर विस्तार से प्रकाश डाला। पुण्यतिथि धूमधाम से मनाकर आपश्री ने यहां से विहार कर दिया। बल्लारी, गुन्तकल, कडप्पा, कनका, तिरुपति, तिरुवल्लूर आदि विभिन्न ग्राम नगरों में धर्म का दीप प्रज्वलित करते हुए आपका पदार्पण मद्रास हुआ। आवड़ी में महावीर जयंती मनाई गई। बाहर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तों की उपस्थिति रही। श्रीसंघ साहुकार पेठ मद्रास, की भावभरी विनती को स्वीकार कर वर्षावास साहुकार पेठ में करने की स्वीकृति प्रदान की। इससे श्रीसंघ साहुकार पेठ में हर्ष छा गया। साहुकारपेठ, मद्रास वर्षावास :- वि.सं. २०४४ के वर्षावास हेतु यथासमय हर्षोउल्लास-मय वातावरण में साहुकार पेठ श्रीसंघ ने प्रवेशोत्सव करवाया। इस अवसर पर हजारों की संख्या में पूजनीया महासती जी की आगवानी के लिये श्रद्धालुभक्त उपस्थित हुए। भगवान महावीर स्वामी की जय, आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी म. की जय, युवाचार्यश्री की जय, महासतियां जी की जय के उद्घोषों से आकाश मंडल गूंज उठा। इस प्रकार पू.गुरुवर्याश्री ने समारोहपूर्वक महिला स्थानक साहुकारपेठ मद्रास में प्रवेश किया। । (६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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