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________________ कोई भी जैन साधु-साध्वी किसी को दीक्षाव्रत अंगीकार करने की अनुमति नहीं देते। बिना अनुमति के जैनों के सभी सम्प्रदायों में दीक्षा देना, अपराध माना जाता है। श्रमण जीवन में आने वाली बाधाओं व परिषहों का ज्ञान आवश्यक है। मुनि जीवन की पाठशाला में जब दीक्षार्थी उत्तीर्ण होता है तभी उसे परम पावन प्रव्रज्या देने का विधान है । अपने परिवार की अनुमति प्राप्त करने के लिए मैंने प्रयास किया और शीघ्र ही मुझे सफलता भी मिल गई। मेरे परिवार की ओर से अनुमति मिल गई । बोलाराम वालों की भावना दीक्षोत्सव का आयोजन बोलाराम में करने की थी। इस समय गुरुवर्य्या का सर्वतोमुखी प्रभाव बोलाराम में फैल चुका था। इधर सिकन्दराबाद श्रीसंघ ने गुरुवर्य्या की सेवा में उपस्थित होकर निवेदन किया- “ दीक्षोत्सव आयोजन का लाभ हमें मिलना चाहिए। हमारी भी इस आयोजन को करने की प्रबल भावना है।” गुरुवर्य्याश्री ने दोनों श्रीसंघों की भावना को ध्यान में रखते हुए समाधानात्मक उत्तर दिया- "छोटी दीक्षा का लाभ सिकन्दराबाद को तथा बड़ी दीक्षा का लाभ बोलाराम वालों को दिया जाता है।” गुरुवर्य्याश्री की इस घोषणा से दोनों श्रीसंघों में हर्ष की लहर फैल गई। आसोज शुक्ला पंचमी वि.सं. २०४१ को सिकन्दराबाद में वाणी भूषण श्री रतनमुनि जी के मुखारविंद से मेरी दीक्षा विधि समारोह पूर्वक सम्पन्न हुई । मुझे नया नाम मिला साध्वी चन्द्रप्रभा और मैं परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. की शिष्या के रूप में घोषित की गई । साध्वी बनकर मेरा मन मयूर नाच उठा। मेरी वर्षो की साध आज पूरी हुई। बड़ी दीक्षा निर्धारित समय पर बोलाराम में सम्पन्न हुई । बोलाराम का यशस्वी वर्षावास सानंद सम्पन्न हुआ । और वर्षावास के पश्चात् बोलाराम से विहार हुआ। बोलाराम से पू. गुरुवर्य्याश्री हैदराबाद पधारे और यहीं के उपनगरों में विचरण करने लगे । कारण यह था कि छोटे साध्वीजी की परीक्षा थी। जब परीक्षा सम्पन्न हो गयी तो यहां से विहार कर आपश्री शमशेर गंज पधारी । बेंगलौर श्रीसंघ वर्षो से आपश्री की सेवा में वर्षावास हेतु विनती करता आ रहा था। इस समय भी जब श्रीसंघ बेंगलौर आपश्री की सेवा में उपस्थित हुआ तो अपनी पुरानी विनती आग्रह के साथ आपश्री के समक्ष रखी । इसी समय सिकन्दराबाद श्रीसंघ ने भी अपनी ओर से वर्षावास हेतु भाव भरी विनती रखी। देशकाल परिस्थिति के अनुसार आपश्री में सिकन्दराबाद श्रीसंघ को वर्षावास की स्वीकृति प्रदान कर दी । इस घोषणा से सिकन्दराबाद श्रीसंघ में आनन्द की लहर फैल गई । सिकन्दराबाद वर्षावास - धूमधाम के साथ वर्षावास प्रारम्भ हुआ। जैसा श्रीसंघ में उल्लास था । वैसा ही त्याग, तपः पूरित आपका प्रवचन होता था। प्रवचन सुनकर श्रोता भाव विव्हल हो जाते थे । प्रवचन में प्रतिदिन जन समूह समुद्र की भांति उमड़ पड़ता । संयमी वाणी का जो प्रभाव होता है । वैसा प्रभाव आचरणहीन वागाडम्बर का नहीं होता। आपके उपदेश ने कइयों के जीवन की दिशा ही बदल दी । जैनेतर समाज के साथ-साथ जैन समाज की सभी शाखाओं वाले जैसे तेरापंथी, स्थानकवासी, श्वेताम्बर जैन मूर्ति पूजक, दिगम्बर आदि सभी से संबंधित भाई बहन भी बड़ी संख्या में प्रवचन में सम्मिलित होकर जिनवाणी श्रवण का लाभ प्राप्त करते । आपके प्रवचन सुनकर सभी के मन में यही भाव उत्पन्न होता कि काश यहाँ स्थित उनके सम्प्रदाय के मुनि भगवंतों, आर्याओं आदि के प्रवचन एक साथ हों तो अद्भुत आनंद आए। भले ही मानव अपने अहंभाववश अपने ही घरों में भाई भाई के बीच विभेद की Jain Education International (६०) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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