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________________ आपश्री अपने जीवन भर तक भूल नहीं पाये। गुरु की महिमा निराली है। गुरु ही सच्चे पथ प्रदर्शक होते हैं। उनका उपकार असीम है। पू. गुरुवर्याश्री के सानिध्य में बालाघाट में श्रद्धाजंलि सभा का आयोजन किया गया। गुरुवर्याश्री ने एवं अन्य अनेक श्रद्धालू गुरु भक्तों ने हार्दिक श्रद्धाजंलि अर्पित की। चार-चार लोगस्स का ध्यान करने के पश्चात् सभा विसर्जित हुई। आंध्रप्रदेश की ओर- गुरुदेव के देवलोक होने के कारण गुरुवर्या जी ने अपने विहार की दिशा बदल दी। बालाघाट से विहार कर आप सौंदड़ पधारी। वहां अग्रवाल भाइयों के पन्द्रह बीस घर है। वहां के लोगों के मन में पू. गुरुवर्य्याश्री के प्रति असीम आस्था थी। आपके वहां पहुंचने पर सबके हृदय खिल उठे। उनकी भक्ति भावना गजब थी। उन्होंने आग्रह पूर्वक गुरुवर्याश्री को रोक लिया। अचानक बोलाराम से श्री संघ आपकी सेवा में उपस्थित हो गया। और अपनी विनम्र भावना आपके चरणों में रखी। गुरुवर्याश्री ने फरमाया- “आपकी नगरी बहुत दूर है। गुरुवर्या श्री की वृद्धावस्था है। आपकी भावना सराहनीय है। जैसा हो पायेगा, समय पर होगा।" आपके इस उत्तर को सनकर बोलाराम श्री संघ हठ करने लगा कि वि. सं. २०४१ का वर्षावास आपको हमारे वहां करना ही होगा। जब तक आप आश्वासन नहीं देगी हम यहां से जाने वाले नहीं है। श्री संघ की प्रबल भावना को देखते हुए गुरुवर्या श्री ने पुनः कहा- “आपकी भावना का ध्यान रखेंगे। साधु भाषा में इससे अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता था। इसके पश्चात् गुरुवर्याश्री का विहार आगे की ओर हुआ। हिंगनघाट, चन्द्रपुर, आसीफाबाद, कागजनगर आदि नगरों में बोलाराम श्रीसंघ के सदस्य बराबर आपकी सेवा में आते रहे और मार्ग में भी साथ रहकर सेवा का लाभ भी लेते रहे । अंततः बोलाराम श्रीसंघ की दृढ़ भावना और सेवाभावना को देखकर महावीर जयंती के अवसर पर आगामी वर्षावास बोलाराम करने की स्वीकृति प्रदान कर दी। इस स्वीकृति से श्रीसंघ बोलाराम में हर्ष की लहर फैल गई। जन जन का मन मयूर प्रसन्नता से झूम उठा। . बोलाराम वर्षावास- विभिन्न ग्राम नगरों में धर्मप्रचार करती हुई पू. गुरुवर्या ने वर्षावास के लिये बोलाराम पदार्पण किया। आपश्री की अगवानी करने के लिये हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त आगे आए। सबका मन मयूर नाच रहा था। बड़े ही धूमधाम के साथ हर्षोल्लास मय वातावरण में बोलाराम में वर्षावास हेतु प्रवेश हुआ। गुरुवर्या के बोलाराम प्रवेशोत्सव के समय में भी साथ थी। यहाँ मैंने सबसे बड़ी विशेषता यह देखी की बालिका मंडल के साथ ही बच्चों में भी बड़ा उत्साह था। ऐसा प्रतीत हो रहा था। मानों उनके लिये आज दीपावली जैसा त्यौहार हो । घर घर में प्रसन्नता छा गई। _प्रवचन प्रारम्भ हुए। आपश्री के प्रवचन पीयूष का पान करने के लिए बोलाराम में जैन जैनेत्तर सभी धर्म के व्यक्ति आने लगे। प्रवचन का सभी नियमित रूप से लाभ ले रहे थे। मैं इस समय वैराग्यवस्था में थी। बोलाराम श्रीसंघ की दृष्टि मेरी ओर पड़ी । एक समय श्रीसंघ के सदस्यों ने गुरुवर्या श्री के समक्ष निवेदन किया- “कु. चंचल की दीक्षा का लाभ हमें मिलना चाहिये ।” __इसी समय अनुकूल अवसर देखकर मैंने भी निवेदन किया- “अब आप मुझे अपने श्री चरणों में स्थान देने की कृपा करें।" "तुम्हारी दीक्षा के लिये अभी अनुकूल समय नहीं है। फिर तुम्हारे परिवार की ओर से अनुमति भी तो नहीं मिली है।" गुरुवर्या ने कहा और मौन हो गयी। यह सत्य है कि बिना परिवार की अनुमति के (५९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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