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________________ चम्पाकुमारी के संसार त्याग की बात चारों ओर गूंज रही थी। अब सभी ने जान लिया था कि कुचेरा की एक होनहार सरस्वती सी अद्भुत युवती साध्वी बनने जा रही है । निकटस्थ एवं दूरस्थ जोधपुर, नागौर, पाली, बालाघाट, कटंगी, दुर्ग, पीपाड़ आदि शहरों एवं अनेक गांवों से बड़ी संख्या में लोग कुचेरा की ओर दौड़े आ रहे थे। सभी का हृदय चम्पाकुमारी के प्रति सम्मान से भरा था। जनमानस उल्लास से ओतप्रोत था। चम्पाकुमारी को नित्य नये वस्त्राभूषणों से सजाया जाता। जिसके मन में जो आता वह करता, किसी प्रकार का किसी पर प्रतिबंध नहीं था। आत्म कल्याण के पथिक का इन भार रूप आभरणों से क्या ममत्व ! जिनका धन विशुद्ध संयम, जिनके अलंकार अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह है। उनकी शोभा ये जड़े अलंकार क्या बढ़ाते । उसके लिए तो मात्र भार रूप ही थे। विधि ने तो चम्पाकुमारी को शाश्वत अलंकारों से सजाने का निश्चय किया था। उसे इन मानवीय दुर्बलता के प्रतीक मिट्टी के आभरणों से सजाना एकमात्र मानवीय अप्रशस्त मोह की संतुष्टि ही था। किन्तु जिसे इस भार से जीवन पर्यन्त के लिए मुक्त होना था, वह इस थोड़ी देर के भार से क्यों घबराती? व्यर्थ किसी के आनन्द में विघ्न भी क्यों बनती? चम्पाकुमारी ने अपने मन में ठान ली थी कि ये लोग जो पहनाएंगें पहन लेना है, खिलायेगें वह खा लेना है। थोड़े समय के आनन्द में विघ्न डालने के स्थान पर इन लोगों का आदेश मान लेना अधिक श्रेयस्कर है। दीक्षा के लिये संवत् २००५ मिगसर शुक्ला दशमी का शुभ मुहूर्त था। यथा समय सर्व संघों, 'समाज के अग्रगण्य नागरिकों तथा विशाल जन समूह के सान्निध्य में चम्पाकुमारी का वरघोड़ा दीक्षा स्थल पर पहुंचा। सारे मार्ग में दान की महत्ता एवं श्रीमंतों को धन का उपयोग बताते हुए दोनों हाथों से धन उछालते हुए चम्पाकुमारी ने दीक्षा स्थल पर प्रवेश किया। सभी की स्नेह सुधा बरसाती हुई दृष्टि के मध्य चम्पाकुमारी ने पूज्य गुरु भगवंत मरुधरा मंत्री श्री १००८ श्री स्वामी जी श्री हजारीमल जी म.सा. पू. उप प्रवर्तक स्वामी जी श्री ब्रजलाल जी म.सा., पूज्य युवाचार्य प्रवर श्री मधुकर मुनि जी म.सा. एवं पूजनीया महासती मंडल के चरणों में वंदन किया। जनता आनन्द से जय जयकार करने लगी। हर्षोल्लास एवं उत्साह असीम था। .. निश्चित समय पर हजारों की उपस्थिति में एवं श्री संघ तथा श्री मोहनमल जी चोरड़िया पद्मश्री की अध्यक्षता में सेठ श्री बीजराजजी सुराणा की पौत्री एवं श्री फूसालाल जी सुराणा की पुत्री, श्रीमती किसना बाई की लाड़ली बेटी परिवारजनों की दुलारी चम्पाकुमारी वेश परिवर्तन कर आई और फिर मरुधरा मंत्री स्वामी श्री हजारीमलजी म.सा. ने परिवार की अनुमति लेकर चम्पाकुमारी को जैन भागवती दीक्षा विधिवत प्रदान की। दीक्षा के उपरांत आपका नाम महासती श्री चम्पाकुंवर कर अध्यात्मयोगिनी महासती श्री कानकुंवर जी म.सा. की शिष्या घोषित किया। अब चम्पाकुमारी साध्वी श्री चम्पाकुंवर जी म.सा. बन गई। शुभ्र श्वेत वस्त्र, मुंडित मस्तक, हाथों में अहिंसा का प्रतीक रजोहरण एवं मुंहपत्ती साध्वी वेश से सशोभित यह रूप आज अदभत दर्शनीय बना था। जो भी देखता देखता ही रह जाता था। लोग श्रद्धावश आपके चरणों में नतमस्तक हो रहे थे। इस समय कुचेरा की छटा देखने योग्य थी। वे अपने असीम साहस और दृढ़ संकल्प के बल पर अपनी मनोकामना पूर्ण करने में सफल रही। सातवें दिन बड़ी दीक्षा प्रदान कर दी गई। दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् नवदीक्षिता महासती श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. सात वर्ष तक लगातार मौन साधना एवं ज्ञान ध्यान में लग गई । दीक्षा के पश्चात् आपको कुचेरा में ही रहना पड़ा। यहां एक महासती जी स्थिरवास में विराजमान थे। इसके अतिरिक्त महासती श्री तुलछा जी म.सा. भी अस्वस्थ थीं। (५०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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