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________________ बड़े भाई से आज्ञा मिल जाने के परिणामस्वरूप वि. सं. १९८९ माघ शुक्ला दशमी को कुचेरा में मरुधरामंत्री स्वामी श्री हजारीमल जी म.सा. के मुखारविंद से भागवती दीक्षा ग्रहण की। आपश्री का नाम महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. रखा गया। दीक्षावत अंगीकार करके आप श्री चन्दनबाला श्रमणी संघ में मिल गई। आपश्री सेवा में अग्रणी थीं। महासती श्री तुलछा जी म.सा. की अस्वस्थता के कारण आपश्री बारह वर्ष तक उनकी सेवा में स्थिरवास रही। तन मन से आपश्री ने उनकी सेवा की। श्रीपानकुंवरजी म.सा. को कैंसर हो गया था, तब ब्यावर में आपने दो चातुर्मास में उनकी सेवा की। आपश्री की वह सेवाभावना ब्यावर के निवासियों को आज भी याद हैं? . पूजनीया श्री जमना जी म.सा. को भी जब संग्रहणी रोग हो गया, तब आपश्री ने हर्षपूर्वक उनकी अग्लान मन से सेवा की। अंतिम समय तक आपकी सेवा की भावना बनी हुई थी। अपनी शिष्या-प्रशिष्या तक की सेवा में सहर्ष लग जाते थे। आपश्री की सेवा भावना को नन्दीसेन मुनि की सेवा की उपमा दी जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सेवा की विधि सीखे तो कोई आपश्री से सीखे। ऐसे साध्वी रल थे श्रीमान् फूसालालजी सुराणा की बहन महासती श्री कानकुंवरजी म.सा. । ___ सुराणा परिवार में बालिका का जन्म- इसी कुचेरा में श्रीमान् फूसालालजी सुराणा की धर्मपरायणा, पतिपरायणा धर्मपत्नी श्रीमती किसनाबाई की पावन कुक्षि से वि.सं. १९८३ मिगसर शुक्ला द्वितीया के दिन बाल रवि की प्रथम किरण के साथ-साथ ही एक सुन्दर मनोरम बालिका ने जन्म लिया। जन्म बालिका का हुआ था, प्रचलित भारतीय प्रथा के अनुसार यह हर्ष का विषय नहीं था, किन्तु महान् आत्माओं का आगमन सहज ही आनन्द हर्षोल्लास का वातावरण बना लेता हैं। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति बालिका के जन्म के अवसर पर हर्ष से नाच उठा। क्योंकि चिरकाल से किलकारियों से सूना घर का आंगन आज सुन्दर, सलोनी, मासूम बच्ची के मीठे रुदन से गूंज उठा था। घर खुशियों की सौरभ से महकने लगा। फूल जैसी कोमल बालिका का पदार्पण हुआ था। फूल सभी को प्रिय होते हैं, उसकी सुगंध चारों ओर महक उठती है। यही कारण है पुष्प की सर्वप्रियता का। परिवार की परम्परा के अनुसार ज्योतिषी को बुलाकर जन्म पत्रिका बनवाई गई। ग्रह गोचर भी पूछे गए। जन्म पा..का में पड़े ग्रहों की स्थिति को देख कर तब ज्योतिषी कुछ असमंजस में पड़ गया था। उसे ऐसी स्थिति में देख कर परिवार के एक सदस्य ने धड़कते दिल से पूछा- “क्या बात है पंडित जी? आप असमंजस की स्थिति में दिखाई पड़ रहे हैं। क्या ग्रह कुछ उलझन में डालने वाले हैं?" मानव हृदय अनिष्ट कल्पना से शीघ्र कांप उठता है। ज्योतिषी ने सिर हिलाते हुए कहा “नहीं, नहीं, सेठ साहब ! घबराने जैसी कोई बात नहीं है। यह कन्या आपके घर में कैसे आ गई? यही मेरे आश्चर्य का विषय है। इसका जन्म तो किसी क्षत्रिय परिवार में होना चाहिए, तभी इसका राजयोग सफल होता। संभव है इसका ग्रह बल इसे परम प्रभावशाली सन्यासिनी बना दें। किन्तु यह भी तो निश्चित रूप से प्रतीत नहीं हो पा रहा हैं। मेरे आश्चर्य का दूसरा कारण यह भी है। मैं निश्चय नहीं कर पा रहा हूँ कि यह पुण्य शालिनी कन्या कौनसी असाधारणता को प्राप्त करेगी। भला इसकी प्रतिभा के विस्तार को कौन रोक सकेगा? इसकी अलौकिक शक्ति से विश्व का कोना-कोना चमकेगा। (४१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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