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वीर भूमि वह राजस्थान, जननी हमारी सब गुण खान। ..
जननी के उर के अभिमान, हम हैं सिंहों की सन्तान ॥ राजस्थान सिर्फ वीरता में ही नहीं, त्याग-बलिदान, कला-कौशल, वैराग्य में भी सदा अग्रणी रहा है। वीरों और संतों की पवित्र धरा रही है राजस्थान। राजस्थान के नागौर जिले में कुचरा ग्राम एक ऐसी पावन भूमि है जिसने अनेक महान आत्माओं को जन्म देने का सद्सौभाग्य प्राप्त किया है एवं अनेक महापुरुषों एवं त्यागी वैरागियों ने साधना कर अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।
इस परम पावन धरा में औसवाल जैन समाज रत्न श्रीमान् सिंभूमलजी सुराणा हुए। वे समाज के हर कार्य में अपना सहयोग प्रदान करने वाले धर्मनिष्ठ सेवाभावी उदारमना श्रावक थे। प्रतिदिन सामायिक, प्रतिक्रमण के साथ पांचों तिथि पौषधोपवास किया करते थे। आपके पुत्र श्री बींजराज जी सुराणा अपने पिता के गुणों का अनुसरण करने वाले थे। आपकी धर्मपत्नी सुश्राविका श्रीमती अनचीबाई धर्म के गहरे रंग में रंग चुकी थी। आपके दो पुत्र और तीन पुत्रियां थी। बड़े पुत्र का नाम धर्मनिष्ठ सुश्रावक श्रीमान् फूसालालजी सुराणा, जो कटंगी (म.प्र.) में निवास करते थे। जिनका सन् १९८४ में देहावसान हुआ। आपका परिवार अभी भी कटंगी में ही निवास कर रहा है। दूसरे पुत्र श्रीमान् कालूराम जी बीस वर्ष की अल्पायु में काल के गाल में समा गए। बड़ी पुत्री सुगनबाई परलोक वासी बन गई।
दूसरी पुत्री कान्ही बाई का शुभ स्वप्न के बाद वि. सं. १९६८ के भाद्रपद कृष्णा अष्टमी को जन्म हुआ। जन्माष्टमी को जन्म होने के कारण कान्हीबाई नाम रखा गया। सर्वांगपूर्ण एवं प्रतिभाशाली कान्हीबाई जब आठ वर्ष की थी। तब माता-पिता ने प्लेग की भयंकर बीमारी से स्वर्गपुरी की राह पकड़ ली। आपकी माता का देहान्त अष्टमी की सायंकाल व पिताजी का देहान्त नवमी के प्रातःकाल हुआ। इसे महान आश्चर्य कहे या संयोग। कछ भी हो यह घटना सभी के लिये विस्मयकारी थी। महादःख की बेला में बड़े भाई श्रीमान् फूसालाल जी सुराणा ने परिवार को सम्भाला।
किशोरावस्था में कान्हीबाई का पाणिग्रहण श्री घासीलाल जी भंडारी के साथ हुआ। विवाह सूत्र में बंधने के बाद सुखपूर्वक दिन व्यतीत हो रहे थे कि क्रूर काल ने श्री घासीलाल जी को अपना ग्रास बना लिया। अल्पायु में ही आपका सौभाग्य लुट गया। संकट की इस बेला में आपने बड़े धैर्य से आगे कदम बढ़ाये। राजस्थान में ही शासन प्रभाविका विदुषी महासती (स्व.) श्री सरदारकुंवर जी म.सा, सरलमना श्री पानकुंवरजी म.सा., आगम रसिका मधुर व्याख्यानी श्री जमना कंवर जी म.सा.. मधर भाषिणी विदपी श्री तुलछाकुंवरजी म.सा. (स्व. युवाचार्य श्री मधुकर मुनि जी म. के माता जी) का सान्निध्य पाकर आपने ज्ञान
में मन लगाया। ज्ञान प्राप्ति के साथ ही संसार की असारता का भाव प्रकट हो गया, जिसके पथ र्शक थे राजस्थान के महान संत स्वामीजी श्री जोरावरमल जी म.सा.। आप श्री फरमाते थे- "जब मैं कुचेरा से कटंगी जा रही थी तो स्वामी जी म.सा. से मैंने काफी चीजों का त्याग लिया था। स्वामी जी म. ने फरमाया था कि तुम वहां जा रही हो, वह तो ठीक है किन्तु अपने त्याग में मजबूत रहना।” और आप श्री मध्यप्रदेश आकर भी वैराग्य से पीछे नहीं हटे, बल्कि आपका त्याग-वैराग्य बढ़ता ही गया। बुद्धि प्रखर होने के कारण कुछ समय में ही ज्ञानार्जन काफी कर लिया। इस प्रकार आपने अपने जीवन को नई दिशा में मोड़ लिया।
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