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________________ गूंजे खुशियों के गीत हृदय बौराये घर घर में मंगल गीत मधुर लहराये लावण्यमयी वह सुन्दर स्वर्ण लतासी ___ कमनीय कान्त कुसुमित स्वर्ण उषासी ॥ दिन बीते रात गई मधु ऋतु मुस्काई __ वह नन्हीं कली बढ़ी सबके मन भाई मन मोह मोह लेती थी मोहक वाणी ___ उसकी सब पर छाई थी मधुर निशानी वह ठुमक ठुमक कर आंगन में चलती थी। बाहर भीतर वह दीपक सी जलती थी। अपनी क्रीड़ा से सब का मन हर्षाया। संतप्त हृदय में शीतल नीर बहाया ॥ जिस ओर देखती सबको वश कर लेती। जन-जन के मन की पीड़ा भी हर लेती ॥ माया ममता से उसने सबको जीता। सबके मानस में बैठ गई वह गीता ॥ सुन्दरता सुषमा की वह प्रतिमा पावन । ___ प्यासे नयनों में बनकर छाई सावन ॥ माता मोहित थी उसकी छवि पर भोली। वह नाच नचाती बना बना कर टोली ॥ वह सुता जन के तन मन को थी प्यारी। जैसे सूने घर की थी वह उजियारी॥ अब उसके जीवन के बसंत छह बीते। जो भरे कूप में घड़े वही अब रीते ॥ बचपन खुशियों में नहीं बीतने पाया। पड़ गई अचानक क्रूर प्लेग की छाया ॥ अब मौत नाचने लगी वहां घर घर में। पत्ते से उड़ने लगे प्राण क्षण भर में ॥ था ऐसा कौन बली जो आकर टोके। उस नरभक्षी को प्राण हरण से रोके ॥ कलियां मुहती फूल सुखते जाते। ___ सुरभित कानन पल-पल में उजड़े जाते ॥ मरघट ताली दे देकर मुस्काता था। ___ मुर्दो की छाती पर चढ़कर गाता था ॥ है मेरा राज्य यहां सब आते जाओ। जलती ज्वाला में देह जलाते जाओ। सौन्दर्य धूल के मोल यहां बिकता है। अभिमान मान सम्मान सभी चुकता है। दिनकर सा तपकर जो अम्बर में आया। वह ढलकर अन्त समय में मेरे घर आया ॥ ओ मानव ! तू ने जीवन अपना खोया। तू हाथ पसारे चला जगत तब रोया ॥ तन में रहते कुछ ऐसा कर्म कमाले भटकन मिट जाये पड़े न पग में छाले ॥ अमरत्व मिले नश्वरता सब मिट जाये। तो इस घट पर आने का क्रम छट जाये ॥ प्यारी कान्हों को छोड़ बिलखती माता। बन गई काल की अतिथि तोड़ सब नाता ॥ रह गये बिलखते जनक न कुछ कर पाये। ___माता के पथ पर उनने कदम बढ़ाये ॥ आगे-पीछे दोनों ने निज तन छोड़ा। निर्मोही इस दुनिया से नाता तोड़ा। वह एक कली केवल घर में रोती थी। ___ जो माता पिता के आंखों की मोती थी॥ अब फूसालाल ही थे इस कुल की आशा जो दे सकता था नीर स्वयं था प्यासा ॥ छाती पर पत्थर रख फूसा अकुलाया। कान्हों को बढ़कर उसने गले लगाया ॥ बहते तिनके को केवल एक सहारा। फूसा थे जिनने सब परिवार सम्हारा ॥ (३२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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