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________________ इन दुर्घटनाओं ने जहां उनके भावुक मन को झकझोर कर रख दिया था। वहां परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता भी प्रदान की। मन का यह विरोधाभास ही उनके लिए प्रगति का सोपान बना। अपना अध्ययन, विचरण जारी रखा। वस्तुतः महासतीजी श्री चौथांजी म.सा. की अन्तेवासिनी महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म.सा., जिन्होंने अपनी पूजनीया गुरुणीजी से उत्तराधिकार में प्राप्त श्रुत चारित्रमय अभियान को वृद्विगत किया, विकसित किया। उस वक्त किशनगढ़ में अपनी गुरु बहन सोनकुंवरजी म.सा. के साथ तत्वज्ञान एवं धर्मप्रभावना के विराट् अभियान में समर्पित थी। आप से प्रेरणा प्राप्त कर किशनगढ़ में मुणोत परिवार से श्रीमती सुन्दरकुंवरजी ने संयमव्रत अंगीकार किया । फिर ठाणा-३ पाली पधारे। वहां पोरवाल परिवार से श्रीमती पानकुंवर की दीक्षा हुई। कुछ दिन पाली विराजकर पुनः तिंवरी पधारें वहां श्रीमती जभनाजी, श्रीमती झमकुकुंवरजी एवं श्रीमती तुलछाकुंवरजी नें पूज्य महासतीजी के पास शिष्यत्व स्वीकार किया। वहां से विहार कर आप कुचेरा पधारी जहां श्रीमती कानकुंवरजी भगवती दीक्षा ग्रहण की। आपकी दीक्षा के बाद परिस्थितियों ने करवटें ली जिनका उल्लेख करना अपेक्षणीय नहीं हैं, वस्तुतः लेखनी एक सीमा पर जाकर विराम पाना चाहती हैं, जबकि परीषहों का समभाव से सहन करने की अदम्य शक्ति शब्दातीत हैं। सन्त रत्न, धर्म शासन के महान सेवी स्वामीजी श्री ब्रजलाल म. बहुश्रुत पण्डित रत्न महान्, ज्ञानयोगी युवाचार्य प्रवर श्री मिश्रीमल जी म.सा. 'मधुकर' साधकवर्य, आत्मार्थी मुनिश्री मांगीलाल जी म. जैसी महान् आत्माओं को उद्बोधित, उत्प्रेरित करने का श्रेय भी महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म.सा. को हैं। आपका विहार क्षेत्र राजस्थान ही रहा। राजस्थान की धरती जहाँ तपती हुई रेत की गिरि है, वहीं पूज्य महासती श्री सरदारकुंवरजी म.सा. इसमें किसी शीतल एवं निर्मल जलकी झील की तरह थी। उन्होंने जिस मार्ग से विहार किया यदि उन्हें वाणी मिली होती तो उनके तप की अमर गाथा सुनाती । जिनका जीवन विकार शून्य और सहज आत्मीय होता है, उनका कोई शत्रु नही । आपके यश नाम कर्म का उदय बहुत प्रबल था। आप अनुपम सौन्दर्य की स्वामिनी तो थी ही, आपका व्यवहार भी मानों देहयष्टि के सौन्दर्य की पीछे छोड़ देना चाहता था। यही कारण है कि उनका कोई निन्दक नही था, सभी सहज ही उनके श्रीचरणों में नतमस्तक होकर उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करते थे । सबसे बड़ी उपलब्धि थी -सात पीढ़ी से पूर्व की स्वर्गस्थ श्री चम्पाकुंवरजी म.सा. जिन्हें विचित्र दिव्य दैविक शक्तियां, विभूतियां प्राप्त थी, जिनका उल्लेख पूर्व में हो चुका हैं। प्रसंगानुसार जहां पुनः उल्लेखनीय है घटना इस प्रका है जब पूज्य महासतीजी श्री सरदारकुंवरजी म.सा. के जीवन में कोई असहनीय कष्ट होता, तो तत्काल श्री चम्पाकुंवरजी म. उनके शरीर में आकर सान्त्वना प्रदान करते थे। प्रत्यक्षदर्शियों ने मेरे पूज्य गुरुवर्या श्री को बताया कि जब उनकी आत्मा शरीर में प्रवेश करती तब जोर से एक आवाज निकलती थी जो कि घण्टों तक गुंजती रहती थी। जिस समय पूज्य दादागुरुणी म. श्री सरदारकुंवरजी म.सा. मदनगंज चातुर्मासार्थ विराज रहे थे, तब की घटना है। कल्प अभाव के कारण पूज्य महासती जी का मन बड़ा खिन्न था, उसी वक्त श्री चम्पाजी म. की आत्मा ने प्रवेश कर कहा सरदारजी ! चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं Jain Education International (४४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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