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निही, हमारे उपचार की आवश्यकता है, हम इनको समाधि जाप और आराधना कराके इनकी आत्मा को स्वर्ग पहुंचाना चाहते है, ७० वर्ष की सुदीर्घ और निर्मल संयम साधना पर अब कलश चढ़ाने का समय है, इस समय प्राण बचाने के बजाय आत्म-समाधि पहुंचाने का महत्व है।"
युवाचार्य श्री के इस कथन का प्रभाव सभी पर हुआ। स्वामीजी को युवाचार्य श्री ने तिविहार संथारा करा दिया। कुछ देर के बाद चौ-विहार संथारा भी पचखा दिया। समय अपनी गति से बीत रहा था। घड़ी को सुइयां खिसकती जा रही थी। दर्शनार्थियों की भीड़ उमड़ रही थी। चौबीसी, आलोयणा आदि सुनाई जा रही थी। युवाचार्य श्री स्वयं ने स्वामीजी का प्रिय पाठ उवसग्गहर सुनाया। उवसग्गहर सुनते समय कई बार बीच बीच में स्वामीजी ने आंखें भी खोली। किंतु टूटी की बूटी नहीं हैं। अंतत: बारह बजकर बीस मिनट पर वह ज्योति मृण्मय देह का आवरण तोड़कर अनन्त अंतरिक्ष में विलीन हो गये। श्रमण संघ में एक समतायोगी, तेजस्वी संत का अभाव छा गया। उत्तरकार्य की औपचारिकता पूरी कर युवाचार्य श्री अपने लक्ष्य की ओर बढ़ गए किंतु अंतर में क्या रहा होगा, इसका अहसास किसी को नहीं होने दिया।
नासिक वर्षावासः- युवाचार्य श्री नासिक पहुंचे और आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी म.सा. के साथ विभिन्न कार्यक्रमों के साथ वर्षावास व्यतीत किया। कई अर्थों में नासिक का यह वर्षावास महत्वपूर्ण रहा। श्रमण संघ के सम्बन्ध में भी यहां विचार विमर्श हुआ। श्रमण संघ की समाचारी में एकरूपता लाने के लिये अनेक योजनायें बनी, पत्राचार चला और सभी को आशा बंधने लगी कि आचार्यश्री एवं युवाचार्यश्री के संयुक्त प्रयासों से अनेक उलझी हुई समस्यायें सुलझ जायेगी।
वज्राघात:- नासिक में विचार विमर्श चल ही रहा था कि एकाएक वज्राघात हो गया। वर्षावास के चार माह बड़े ही आनंद, उल्लास और बहुविध कार्यक्रमों के साथ सम्पन्न हुए। श्रमण संघ की सुदृढ़ता के लिए अनेक नवीन योजनाओं पर गंभीर विचार विमर्श हुआ। इस प्रकार हर्षोल्लासमय वातावरण में वर्षावास समाप्त हुआ। वर्षावास की समाप्ति के पश्चात् आचार्य सम्राट, युवाचार्यश्री आदि अन्य मुनि गण पंचवटी, नासिक से विहार कर रविवार पेठ कारंजा स्थित स्थानक में पधारे। अचानक दि. २६ नवम्बर १९८३ को वज्राघात हुआ। अल्प अस्वस्थता के पश्चात् युवाचार्यश्री का आकस्मिक निधन सम्पूर्ण स्थानकवासी जैन समाज के लिए वज्रपात के समान था। युवाचार्यश्री के निधन का समाचार आकाशवाणी से भी प्रसारित हुआ। जिसने भी आपके आकस्मिक निधन का समाचार सुना वही हतप्रभ रह गया। श्रद्धालु भक्तों का सेलाब नासिक शहर की ओर उमड़ पड़ा।
भारतवर्ष के कोने-कोने से आये श्रद्धालुओं की उपस्थिति में अश्रुपूरित नेत्रों से गोदावरी नदी के पावन तट पर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी गई। स्थानकवासी जैन समाज का एक महान प्रतिभा सम्पन्न युग पुरुष सदा के लिये चला गया।
- व्यक्तित्व की सौरभः- युवाचार्यश्री, जो सर्वत्र श्रीमधुकर मुनिजी के नाम से सुविख्यात थे, में अनेकानेक गुण थे। अनेक गुणों में सरलता और विनय गुण तो उनमें इस सीमा तक थे कि उन्हें मैं शब्दों में अभिव्यक्त करने की स्थिति में नही हूं। युवाचार्य श्री के गुणों के सम्बन्ध में जो लिखा गया है, मैं वही उद्वरित करना उचित समझती हूँ। यथा
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