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________________ प्रयास रहा कि युवाचार्य का एक बार आचार्य भगवंत के साथ मिलकर विचार विमर्श करना अति आवश्यक है। श्रमण संघ की समस्याएँ दोनों के प्रत्यक्ष मिलन और चर्चा से सुलझ सकती है। संघ की एकता, अखंडता की बात बार बार उठती और युवाचार्य श्री को राजस्थान छोड़कर आचार्य सम्राट के पास महाराष्ट्र की ओर विहार करने के लिये प्रेरित करती । वि.सं. २०३९ का अपना मदनगंज का यशस्वी वर्षावास समाप्त होने पर आपने वहां से विहार कर दिया और ग्रामानुग्राम विहार करते हुए सोजत रोड़ पधारे। यहां श्री मरुधर केसरी जी म.सा. एवं श्री कन्हैयालालजी म.सा. 'कमल' आदि मुनिराजों के साथ कुछ दिन ठहरे। फिर सोजत रोड से महाराष्ट्र की ओर विहार कर दिया। गर्मी का मौसम और दस-पन्द्रह किलोमीटर का प्रतिदिन का विहार, उसके साथ ही उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलाल जी म.सा. की अस्वस्थता | स्वामीजी म.सा. का स्वास्थ्य काफी क्षीण हो चुका था, फिर भी एक संकल्प था, आचार्य सम्राट की सेवा में पहुंचने का, तो विहार यात्रा असुविधाओं के होते हुए भी सतत चल रही थी। जहां कही भी आप पहुंचते श्रद्धालु भक्त अपने भावी आचार्य के दर्शनलाभ के लिए उमड़ पड़ते। मारवाड़, मेवाड़ की भूमि से आपके चरण मालवा की ओर बढ़े। मालवा में आपका पदार्पण प्रथम बार ही हो रहा था। आपके पदार्पण से पूर्व ही आपके व्यक्तित्व की सौरभ से यहां के निवासी परिचित थे। जब मालवा के ग्राम नगरों में आपका आगमन होता तो श्रद्धालु भक्त आपके दर्शन करने और प्रवचन पीयूष का पान करने उमड़ पड़ते। मालवा के ग्राम नगरों में जहां भी आपका पदार्पण हुआ वहीं हर्षोल्लास का वातावरण निर्मित हो गया। आपका लक्ष्य आचार्य सम्राट की सेवामें पहुंचना था। दूरी काफी थी। इधर गर्मी का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा था। ऐसे में उग्र विहार हो पाना भी कठिन था। ऐसी स्थिति में आप कहीं पर भी अधिक ठहर नहीं सकते थे। ग्रामानुग्राम धर्मध्वजा फहराते हुए मालवा की भूमि से आपके कदम महाराष्ट्र की ओर बढ़ गये। गर्मी में सतत् विहार में रहने के कारण स्वामी श्री ब्रजलाल जी म.सा. के स्वास्थ्य पर कुछ विपरीत प्रभाव पड़ा। वैसे भी इदं शरीर व्याधि मंदिरम के अनुसार यह शरीर व्याधियों का घर है। स्वामी जी म.सा. का स्वास्थ्य पहले से ही नरम था। गर्मी और विहार के कारण उनका स्वास्थ्य और अधिक गिर गया। स्वामी जी के गिरते स्वास्थ्य से युवाचार्य श्री के अंतर में उथल पुथल भले ही मची हुई होगी किंतु ऊपर से वे शांत और गंभीर ही बने रहते थे । सतत् विहार करते हुए आपका पदार्पण धूलिया हुआ । स्वामीजी का स्वर्गवास:- युवाचार्य श्री का जैसे ही धूलिया पदार्पण हुआ, वैसे ही धूलिया में हर्षोल्लास की लहर फैल गयी। धूलिया में आपका पदार्पण २६ जून १९८३ को हुआ था । २९ जून १९८३ को आगे की ओर विहार करने की घोषणा की जा चुकी थी किंतु उस दिन घनघोर वर्षा होने से विहार न हो सका। ३० जून १९८३ को स्वामीजी की अस्वस्थता बढ़ने लगी। इससे भी विहार न हो सका। डाक्टरों ने स्वास्थ्य परीक्षण के पश्चात पूर्ण विश्राम की सलाह दी। स्वामीजी म. के शरीर में रक्त की कमी को देखते हुए रक्त चढ़ाने की बात आई तो एक रोमांचक दृश्य उपस्थित हो गया। धूलिया के सैकड़ों युवक अपना रक्त देने के लिए चिकित्सालय पहुंच गये और अपना रक्त देने के लिए कतारबद्ध खड़े हो गये। स्वामीजी को रक्त भी चढ़ाया गया किंतु इसका भी कोई असर नहीं हुआ। डाक्टरों ने स्वामी जी को बम्बई या नासिक ले जाने का आग्रह किया । युवाचार्य श्री डाक्टरों की भाषा समझ गये। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए युवाचार्यश्री ने फरमाया- "स्वामी जी को इस स्थिति में अब आपके उपचार की Jain Education International (३७) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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