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________________ श्रमण संघ के संगठन में तो स्वामीजी श्री का योगदान अनन्यतम कहा जा सकता है। आपकी सूझ-बूझ, उदारता व प्रतिष्ठा की भावना से निर्लिप्तता और सभी मुनिवरों के साथ मिलनसारिता ने श्रमण संघ की ऐतिहासिक एकता का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। • महाप्रयाण वि.सं. २०१८ का वर्षावास आपश्री ने कुचेरा में सम्पन्न किया था। चातुर्मास के बाद नागौर के श्री संघ ने आगामी (वि.सं. २०१९ का) चातुर्मास के लिए भावभीनी प्रार्थना की। आपने कहा-“सूखे समाधे काया ने साथ दिया तो आगामी चातुर्मास नागौर में करने के भाव हैं।" इस घोषणा में छिपे अनिश्चय को उस समय किसी ने नहीं समझा। पर आपश्री स्वयं जैसे अपने अंतिम समय को अनुभव करने लग गये। चैत्र मास में आप श्री, मुनि श्री ब्रजलाल जी एवं श्री मधुकर मनिजी महाराज तीनों ही श्रमण (गरुभाई) चांदावतों का नोखा पधारे। कुछ अस्वस्थता अनुभति हो गयी थी कि अब यह माटी की देह माटी में मिलने वाली है। आपने पंच महाव्रतों का आरोपण किया, अन्त:करण को शद्ध, शान्त, प्रसत्र व निर्मल भावों से भावित करते हए चैत्र कृष्णा १० (वि.सं. २०१८) की रात्रि को समाधिपूर्वक देह-त्याग किया। समता, सत्य-निष्ठा, सहिष्णुता और उदारता का एक जीवन्त प्रतीक इस धरा से विलय हो गया। शिष्य प्रशिष्य स्वामीजी के दो शिष्य हुए- (१) श्री मांगीलालजी म.सा., (२) श्री मोहन मुनि जी म.सा.। श्री मोहन मुनि जी म.सा. के शिष्य श्री अजित मुनि, श्री प्रदीप मुनि, सा. तपस्वी, श्री सोहन मुनि एवं स्व. ., सेवाभावी श्री भेरु मुनि हुए। श्री सोहन मुनि के शिष्य श्री श्रवण मुनि हुए। तपस्वी श्री मोहन मुनिजी म.सा. श्री अजित मुनिजी म.सा. एवं श्री प्रदीप मुनिजी म.सा. अभी विद्यमान हैं। (२७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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