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स्वामीजी ने नपा-तुला उत्तर दिया-“तुम धर्म में श्रद्धा रखते हो तो तुम्हें कोई रोकने वाला नहीं, देखों किसी ने रोका तुम्हें?"
आगत बन्धुओं का मनोरथ पिघल गया। स्वामीजी ने स्नेहपूर्वक धार्मिक पुस्तकें उनको दिलाते हुए कहा-“तुम्हारी धर्म के प्रति श्रद्धा है, बड़ी अच्छी बात है,. इनको पढ़ो।” हरिजन बन्धु गद्-गद् होकर नमस्कार करके चले गये।
यह थी आपकी उदारता, समता और समयज्ञता। उत्कट सहिष्णुता
स्वामीजी श्री हजारीलाल जी महाराज के जीवन में ज्ञान का आलोक जगमगाता रहता था। आगमों के गम्भीर अनुशीलन व अध्ययन की रसानुभूति से उनके जीवन में धीरता, गम्भीरता और सहिष्णुता का अवतरण हो गया था। आचारांग सूत्र में बताया है कि साधक जब आत्मा व कर्म का भेदविज्ञान कर लेता हैं तो बाहरी कष्ट वेदना उसको व्यथित तथा त्रस्त नहीं कर सकते। वह उन वेदनाओं की पीड़ा मात्र शरीर तक ही भोगता है, उसकी आत्मा तो घोर वेदना के समय भी शान्त प्रसन्न और स्वरूप में रमण करती रहती हैं।
स्वामीजी श्री हजारीलाल जी महाराज के जीवन में ऐसी ही उत्कट सहिष्णुता व समता के दर्शन होते हैं। एक बार स्वामीजी के वक्ष पर एक बड़ी गाँठ हो गयी। गाँठ कुछ तकलीफ देने लगी तो डॉ. कंजबिहारीलाल जी को बताया गया। डॉ. साहब ने देखकर निदान किया-"इसका आपरेशन करना पड़ेगा वर्ना आगे तकलीफ बढ़ सकती है।" सब की सलाह के बाद आपरेशन का निश्चय हआ। आपरेशन करने से पूर्व डॉक्टर ने पूछा-"क्लोरोफार्म सुंघाया जाय या इन्जेकशन?"
स्वामी जी ने बड़ी सादगी के साथ उत्तर दिया-“किसी का भी प्रयोग नहीं। आप अपनी सुविधा के ' अनुसार जैसा चाहें, जितना चाहें काट लीजिए, मैं सब तरह से तैयार हूं।"
उत्तर सुनकर डॉक्टर चकित रह गया। आज तक किसी मरीज से उसने ऐसा उत्तर नहीं सुना था। इतना धैर्य! इतनी अद्भत सहिष्णता! ४५ मिनट के आपरेशन के बाद करीब ६ तोला (७० की गाँठ निकाल कर टेबल पर रखी। मुनि श्री पूरे होश में थे। डॉक्टर ने कहा-“तीन दिन तक आपको यहीं आराम करना होगा।"
धीर व गम्भीर संत का उत्तर था-"इसकी भी कोई जरुरत नहीं, मैं धीरे-धीरे चलकर अपने स्थान तक पहुंच जाऊंगा।” और करीब ४ फाग दूर पीपलिया बाजार स्थानक में मुनिश्री चलकर आ गये। फूलों-सा कोमल मन
सत्पुरुषों के लिए कहा जाता है-“अपनी पीड़ा सहते समय वे वज्र के समान कठोर होते हैं,और दूसरों के दुःख के समय फूल से भी अधिक कोमल।'
वज्रादपि कठोराणि मृदुनि कुसुमादपि
स्वामी जी श्री हजारीमल जी महाराज के जीवन में यह वृत्ति साकार हो गयी थी। उनकी अद्भूत धीरता, सहिष्णुता का एक उदाहरण हम दे चुके हैं, अब उनकी कुसुम-सम कोमलता का भी उदाहरण देखिए
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