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________________ बख्तसिंह जी जो जोधपुर-नरेस अभयसिंह जी के भाई थे, मुनि श्री के सम्पर्क में आकर सर्वथा बदल गए। आपने शिकार और पर-स्त्री-त्याग के आजीवन पच्चक्खाण लिए। जोधपुर में रामकुंवर बाई ने बीकानेर क्षेत्र को स्पर्शने के लिए निवेदन कर रखा था, अतः नागौर में सत्य-धर्म का डंका बजाकर मुनि श्री जयमल जी म.सा. की भावना बीकानेर की तरफ बढ़ने की हुई। महाराज बख्तसिंह जी को मालूम पड़ा तो उन्होंने कई शंकाएं मुनिवर के सम्मुख रखी। मार्ग बड़ा कठिन था, अन्यान्य सम्प्रदायों का वहां जोर था, यतियों का अड्डा था बीकानेर और सबसे बड़ा खतरा जोधपुर और बीकानेर की सीमा पर था। कुछ ही वर्ष पूर्व जोधपुर एवं बीकानेर के बीच युद्ध हुआ था जिसमें भंडारी रतनसिंह जी काम आ गये थे। अत: संभावना इस बात की भी थी कि किसी को इधर की सीमा से उधर जाने न दिया जाए। मुनिवर ने इन बातों के होते हुए भी विहार कर दिया। वे अपने विचारों में दृढ़ थे और किसी भी आपत्ति-विपत्ति से जूझने के लिए कटिबद्ध थे। मन में उनके एक ही भावना थी, उस क्षेत्र में जहां सत्य-धर्म का और सत्यधर्मानयायी साधओं का विचरण बिल्कल नहीं हैं. ऐसा प्रचार करना/ वातावरण बनाना कि सत्य-जिन-धर्म की प्रभावना हो सके। अत्यन्त दुर्गम पथों से विचरण कर शनैः शनैः आगे बढ़ते, विहार करते मुनिराज बीकानेर की सीमा पर जा पहुंचे। मार्ग में रास्ते दुर्गम होने के अतिरिक्त ठहरने के स्थान पर प्रासुक (ग्रहण करने योग्य) आहार का न मिलना ही सबसे बड़ी बाधा, तकलीफ थी। सीमा पर उनका स्वागत किया यतियों द्वारा तैनात किराये के लठैतों ने। लाठियों का भय दिखाकर उन्हें रोका और बताया कि इस क्षेत्र में या तो यति ही प्रवेश कर सकते हैं या उनसे अनुमति प्राप्त अन्य सम्प्रदाय के साधु। यतियों ने आपको रोकने के लिए हमें तैनात किया हैं। हमें हुक्म हैं कि यदि इस पर भी आप लोग न मानें तो आप लोगों के हाथ-पैर तोड़ दिए जाए। मुनि श्री अहिंसक थे, वे हिंसा में विश्वास नहीं रखते थे। शांति के साथ उन्होंने पूछा-“क्या यह महाराजा का हुक्म हैं?" लठैत बोले-“यह महाराजा का हुक्म तो नहीं पर यहां यतियों का हुक्म महाराजा के हुक्म की तरह ही प्रभावशाली है। मुनि श्री जयमल जी ने वातावरण के अध्ययन तथा अगला कदम उठाने के लिए तालाब के किनारे बनी एक छतरी का आश्रय लिया। पास में कुछ कुम्हारों के घर थे, वहां से कुछ आटा और बर्तन आदि पकाते समय निकली राख का पानी आदि मिलता। कुछ संत गोचरी के नाम पर उसे उदरस्थ करते और कुछ उपवास करते। क्षुधा और भीषण ठण्ड का परीषह आठ दिन तक मुनिजन समभाव-पूर्वक सहन करते रहे। संयोगवश नववें दिन रामकुंवर बाई को इस बात का पता लगा। इन्हीं रामकुंवर बाई ने मुनिवर को बीकानेर स्पर्शने की विनती की थी। जब सारी बात का पता लगा तो बाई ने प्रतिज्ञा की कि जब तक गुरुवर बीकानेर में पधार कर गोचरी नहीं करेंगे, अन्न-जल ग्रहण नहीं करेंगे, मैं भी मुंह में अन्न का दाना नहीं लूंगी। बाई के दो जवान बेटे बीकानेर महाराजा गजसिंह जी के दीवान थे। उन्हें मालूम हुआ तो वे महाराजा के पास गए। फिर क्या था? पलक झपकते ही राजकीय आज्ञा-पत्र निकला, पूज्य श्री का बीकानेर प्रवेश हुआ, धर्म का डंका बजा। आपके तप और ज्ञान का अद्भुत तेज, उसी के साथ ओजस्वी वाणी का जादूभरा प्रभाव। बीकानेर में भी आपके प्रवचनों का बड़ा अच्छा प्रभाव रहा। बीकानेर-नरेश भी प्रभावित हुए और शिकार न खेलने का व्रत लिया। आज तक जो मार्ग एवं क्षेत्र संतों के विहार के लिए बन्द था, मुनि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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