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________________ इस खण्ड में काव्यमयी श्रद्धांजलियां भी दी गई है। रस, छन्द, अलंकार की दृष्टि से कुछ काव्यांजलियों का काव्य सौष्ठव आनन्द विभोर कर देता है। इनमें कुछ गेय, पद भी है। पद्यमय श्रद्धांजलियाँ काव्य साहित्य की निधि बन गई है। साधक जीवन में और गृहस्थ जीवन में भी गुरु का विशेष महत्व और स्थान होता है। वह गुरु ही होता है जो समय-समय पर अपने शिष्यों-भक्तों का पथ प्रदर्शन करता है, उन्हें सत् पथगामी बनाता है, उनके जीवन को संवारता है। द्वितीय खण्ड में महासती द्वय की गुरु परम्परा दी गई है। धर्मवीर लोकशाह से आचार्य श्री जयमलजी म. सा. की परम्परा के आचार्य श्री. कानमलजी म. सा. की परम्परा के उल्लेख के साथ, ही स्वामी श्री जोरावरमलजी म. सा. कलम के जादूगर मरुधरा मंत्री स्वामी श्री हजारीमलजी म. सा. समतायोगी, उपप्रवर्तक स्वामी श्री ब्रजलाल जी म. सा, युवाचार्य श्री मिश्रीमलजी म. सा. 'मधुकर' एवं विदुषी महासती श्री सरदार कुवर जी म.सा. के जीवन पर प्रकाश डालने वाले लेख दिये गए हैं। तृतीय खण्ड में महासती द्वय के जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला गया है। अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकवंर जी म. सा. के जीवन दर्शन को लिपिबद्ध किया है उन्हीं की विदुषी शिष्या महासती श्री. कंचनकुवरं जी म. सा. ने और साथ ही उनकी पाँच प्रिय कहानियाँ भी दी गई है। इसी के सात श्रीकान शतक (पद्य मय जीवन परिचय - मेरे द्वारा रचित) भी दिया गया है। परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. का जीवन दर्शन मैंने स्वयं लिपिबद्ध किया है। महासती द्वय के जीवन पर प्रकाश डालने वाले कुछ अन्य लेख भी हैं। मैं यहां एक बात स्पष्ट करना प्रासंगिक समझती हूँ कि महासती द्वय का प्रस्तत जीवन परिचय उनके पाली वर्षावास के पश्चात, का विवरण देने वाला है। महासती द्वय के मारवाड़ के कृतित्व के सम्बन्ध में इन आलेखों में नहीं के बराबर प्रकाश डाला जा सका है। इस सम्बन्ध में पर्याप्त समय और श्रम की आवश्यकता है। समयाभाव होने और मारवाड़ से सुदूरदक्षिण में होने तथा महासती द्वय के मारवाड़ विचरण की जानकारी देने वाले कोई भी स्रोत न होने के कारण यह कमी रह गई है। इसकी पूर्ति भविष्य में करने का प्रयास किया जावेगा। चतुर्थ खण्ड- नारी : मूल्य और महत्व है। इस खण्ड में कुल ग्यारह लेख दिये गए हैं। इन सभी लेखों में नारी के महत्व और उसके गरिमामय, उ विद्वान लेखकों ने विस्तार से प्रकाश डाला है। समयाभाव के कारण हम इस खण्ड को चाहते हुए भी और अधिक स्मृद्ध नहीं कर पाये। जैन परम्परा के विविध आयाम - यह नाम है पंचम खण्ड का। इस खण्ड में कुल उन्चालिस लेख दिए गए हैं। इन लेखों में देश के सुविख्यात विद्वान लेखकों ने अपने-अपने लेखों में नए दृष्टिकोण से सप्रमाण अपने विचार अभिव्यक्त किए हैं। कई लेखों में तुलनात्मक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है। कुछ लेख ऐसे भी हैं जो अनुसंधानकर्ताओं के लिए मार्गदर्शन करते हैं और कुछ ऐसे है जो आगे अनुसंधान के लिए प्रेरित करते हैं। प्रयास यही किया गया है कि सामग्री उपयोगी और ज्ञानवर्धक हो तथा उसमें कुछ न कुछ नवीनता हो। (१२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012025
Book TitleMahasati Dwaya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhashreeji, Tejsinh Gaud
PublisherSmruti Prakashan Samiti Madras
Publication Year1992
Total Pages584
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size12 MB
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