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गया। अपेक्षा से भी कम समय में डॉ. गौड़ का उत्तर मिला जिसमें यह सुझाव दिया गया था कि चौर सौ पृष्ठों की स्मारिका के स्थान पर स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करना अधिक उपयोगी और गरिमामय रहेगा। दोनों के व्यय में को विशेष अंतर भी नहीं आवेगा। साथ ही डॉ. गौड़ ने स्मृति ग्रंथ के लिए प्रस्तावित रूपरेखा भी बना कर अवलोकनार्थ एवं अनुमोदनार्थ भेजी। स्मृति ग्रंथ का यह सुझाव उपयोगी लगा और आपस में विचार-विमर्श कर सद्गुरुवर्याश्री परम विदुषी महासती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा. की स्मृति में स्मृति ग्रंथ के प्रकाशन की योजना को अंतिम रूप दे दिया गया। इस स्मृति ग्रंथ के लिए विद्वानों से सम्पर्क कर लेखादि मंगवाने का भार भी डॉ. गौड़ जी को सौंपने का निर्णय कर, इसके अनुरूप उन्हें सूचना दे दी गई।
अभी स्मृति ग्रंथ का कार्य आरम्भ हुआ ही था अपेक्षित सामग्री एकत्र हो ही रही थी कि इसी बीच एक और गहरा आघात लगा। सदादगुरुवाश्री अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकंवरजी म. सा. जो पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ थे, दिनांक ४ अगस्त १९९१ श्रावण कृष्णा ९ वि. सं. २०४८ को हमें छोड़कर महाप्रयाण कर गए। आपश्री के देवलोक होने से हम सभी को गहरा अघात लगा। अब हमारे सम्मुख यह समस्या उत्पन्न हो गई कि सद्गुरुव-श्री की स्मृति में प्रकाश्य स्मृति ग्रंथ के सम्बन्ध में क्या किया जाये ? यह इसी स्वरूप में प्रकाशित किया जाता है तो उचित नहीं रहेगा,कारण कि दादगुरुवर्याश्री की भी अब स्मृतियाँ ही शेष रह गई थी। पर्याप्त सोच विचार के पश्चात् यही निर्णय लिया गया कि सद्दादगुरुवर्याश्री एवं सद्गुरुवर्य्याश्री दोनों की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये इस ग्रंथ को महासती द्वय स्मृति ग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जावे। इसी प्रकार के सुझाव भी कुछ दिनों के पश्चात् हमारे समक्ष आये भी। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रख कर इसके अनुरूप. महासती द्वय स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करना है, यह सूचना आवश्यक कार्रवाई के लिये डॉ. गौड़ को दे दी गई।
इस प्रकार मूल रूप में परम विदुषी महासती. श्रीनम्पाकुवंरजी म. सा. की स्मृति. में प्रकाशित होने वाला स्मृति ग्रंथ अब महासती द्वय (अध्यात्म योगिनी महासती श्री कानकुवंर जी म. सा. एवं परम विदुषी महसती श्री चम्पाकुवंर जी म. सा.) स्मृति गंध के रूप में प्रकाशित होकर आपके हाथों में है।
मूल रूप में ग्रंथ की प्रस्तावित रूप रखा दो खण्डों में प्रसारित की गई। किन्तु बाद में विचार विमर्श के पश्चात् प्रस्तुत ग्रंथ को पाँच खण्डों में सुव्यवस्थित कर प्रकाशित किया गया। इन पाँचों खण्डों की विषय वस्तु का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है : -
प्रथम खण्ड- श्रद्धासुमन में महासती द्वय के सम्बन्ध में मुनि भगवतों, महासतियां जी तथा श्रद्धाल श्रावक/श्राविकाओं द्वारा अर्पित श्रद्धांजलियाँ दी गई है। किन्तु ये कोरम कोर श्रद्धांजलियाँ ही नहीं है। इनमें प्रसंगानुसार जैन विद्या के तत्वों का उल्लेख भी है और महासती द्वय के जीवन के अवि स्मरणीय क्षणों के विवरण के साथ ही उनके सद्गुणों का भी दिग्दर्शन करवाया गया है। इस प्रकार यह खण्ड स्वतः ही महत्वपूर्ण बन गया है।
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