________________
धीरज कौन बंधाये (तर्ज- जब तुम्हीं चले परदेश)
• महासती श्री कंचन कुंवर म., मद्रास श्री चम्पा कुंवर जी महाराज छोड़कर साज स्वर्ग सिधाये।
___ अब धीरज कौन बंधाये॥ जिनवाणी सुधा वर्षाते थे, सबको वंदन कर हर्षात थे।
संयम सौरभ महकाये॥ गागर में सागर भर लाते, नित नूतन बात सिखाते।
अंतरतम कौन भगाये॥ जन मन को राह बताते थे, भूलो को पथ पर लाते थे।
करुणा का स्त्रोत बताये। शास्त्रों का मंथन करते, ज्ञान ज्योति प्रज्वलित करके।
दया प्रेम ममता के दीप जलाये॥ चरणों में शीश झुकाते हैं, श्रद्धा के पुष्प चढ़ातें हैं।
कंचन के हृदय समाये॥
चंपा महासइ - सई पणमाभि
• -डॉ. उदयचन्द्र जैन
सम्मावया - धरणसील वरा चरिता मुत्ती सुसेविय- वरिष्ठ गुणाणुधीरा।
णायव्व- पंचविह णाण पगास जुत्ता चंपा -महासइ सई पणमामि णिच्च॥१॥
(८२)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org